रूस की 1917 की क्रांति/बोल्शेविक क्रांति: कारण, परिणाम तथा महत्व
Rus Ki Kranti विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण क्रांतियों में से एक है। इस क्रांति ने विश्व में प्रथम बार रूस में समाजवादी सरकार की स्थापना की थी। Rus Ki Kranti एक ऐसे समय में हुई थी जब लगभग सम्पूर्ण विश्व एक महायुद्ध अर्थात प्रथम विश्व युद्ध में लगा हुआ था। इस लेख में रूस की 1917 की क्रांति के बारे विस्तार से चर्चा गई है।
Table of Content
- 1917 की Rus Ki Kranti/Bolshevik Kranti/साम्यवादी क्रांति की पृष्ठभूमि
- 1917 की Rus Ki Kranti Ke Karan
- 1917 की Rus Ki Kranti की शुरूआत
- रूसी क्रांति का महत्व और उसके परिणाम
- FAQs
1917 की Rus Ki Kranti/Bolshevik Kranti/साम्यवादी क्रांति की पृष्ठभूमि
1917 की क्रांति के पश्चात रूस निरन्तर शक्तिशाली बनता चला गया और जब द्वितीय युद्ध आरम्भ हुआ तो रूस ने जर्मनी को पराजित करके अपनी सैन्य शक्ति का परिचय दिया। अन्य क्रांतियों की भांति, रूसी क्रांति के मूल कारण रूस के पिछले एक शताब्दी के इतिहास में निहित थे। 1917 से पूर्व रूस की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। जार एलेक्जेंडर तृतीय तथा निकोलस द्वितीय के दमनकारी और प्रतिक्रियावादी शासन के कारण लाखों रूसियों में तीव्र असंतोष व्याप्त था। शासन-व्यवस्था शिथिल तथा भ्रष्ट थी। समाज में घोर असमानता फैली हुई थी। इन्ही सब परिस्थितियों में प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हो गया। शीघ्र ही रूसी सेनाओं की जर्मनी के मुकाबले में बुरी तरह पराजय हुई जिसके फलस्वरुप रूसी जनता ने निकोलस द्वितीय के अयोग्य, भ्रष्ट और दमनकारी शासन से मुक्ति पाने के लिए मार्च 1917 में प्रबल विद्रोह कर दिया। चलिए विस्तारपूर्वक जानते है की इस क्रांति के पीछे कौन-कौन से कारण निहित थे।
1917 की Rus Ki Kranti Ke Karan
1917 की रूस की क्रांति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे -
1. सामाजिक विषमता
रूसी क्रांति से पूर्व समस्त रूसी समाज मुख्यतः दो भागों में विभक्त था -
A. अधिकार-युक्त वर्ग
यह विशेषाधिकार प्राप्त सम्पन्न वर्ग था। इस वर्ग में जार, समस्त धर्माधिकारी और उच्च पदाधिकारी सम्मिलित थे। समाज में अधिकार-युक्त वर्ग का बोलबाला था। देश की अधिकांश धन-संपति और भूमि पर इन्हीं लोगों का अधिकार था। ये लोग ठाठ-बाट पूर्वक जीवन व्यतीत करते थे।
B. अधिकार-हीन वर्ग
इस वर्ग में किसान, मजदूर आदि सम्मिलित थे। अधिकार-हीन वर्ग के करोडों किसान और मजदूरों की दशा अत्यधिक शोचनीय थी। उन्हें पीड़ित, शोषित अर्द्धनग्न तथा भूखे रहकर जीवन व्यतीत करना पड़ता था। परिणामस्वरुप निम्न वर्ग के लोगों में इस सामाजिक विषमता के विरुद्ध तीव्र आक्रोश फैला हुआ था।
2. जार की दमनकारी नीति
रूस का जार एलेक्जेंडर तृतीय (1818-94) निरंकुश, प्रतिक्रियावादी और क्रूर शासक था। उसके समय में क्रान्तिकारियों और उदारवादियों को कठोरतापूर्वक कुचल दिया गया था। 1894 में निकोलस द्वितीय गद्दी पर बैठा। वह भी अपने पिता एलेक्जेंडर तृतीय की भांति निरंकुश और प्रतिक्रियावादी था। उसने शासन की नीतियों का विरोध करने वाले का क्रूरतापूर्वक दमन किया। किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाये बंदी बनाया जा सकता था अथवा साइबेरिया के ठंडे प्रदेशों में निर्वासित किया जा सकता था। जार का प्रधानमंत्री स्टालीपिन भी घोर प्रतिक्रियावादी था। उसने क्रान्तिकारियों को दंडित करने के लिए विशेष सैनिक न्यायालय स्थापित किये। परिणामस्वरुप जार की दमनकारी और प्रतिक्रियावादी नीति के कारण रूसी जनता में तीव्र आक्रोश व्याप्त था।
3. मजदूरों की जागृति
रूस के 25 लाख मजदूरों की दशा भी किसानों के समान दयनीय थी। मजदूरों को गंदी बस्तियों की तंग कोठरियो या झोपड़ियों में रहना पड़ता था। उनके आवास, मनोरंजन, चिकित्सा आदि की कोई संतोषजनक व्यवस्था नहीं थी। क्रान्तिकारी समाजवादी दल ने मजदूरों के असंतोष से लाभ उठाकर उनके मध्य समाजवादी सिद्धांतों का प्रचार किया और जारशाही के विरुद्ध संगठित होने की प्ररेणा दी। मजदूर वर्ग क्रांतिकारियों के विचारों से प्रभावित होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने को तैयार हो गया। 1905 में क्रांति का सूत्रपात मजदूरों ने ही किया था।
4. अरूसी जातियों का विरोध
रूसी साम्राज्य में अनेक गैर रूसी जातियों रहती थी। एलेक्जेंडर तृतीय तथा निकोलस द्वितीय ने अरूसी जातियों का रूसीकरण करने की नीति अपनाई तथा यहूदियों एवं आर्मीनियों पर अमानवीय अत्याचार किये गये। 1905 में जार्जिया, पोलैंड तथा बाल्टिक प्रांतों में रूसीकरण की नीति के विरुद्ध भयानक विद्रोह हुए। एलेक्जेंडर तृतीय तथा निकोलस द्वितीय की रूसीकरण की नीति के कारण अरूसी जातियों में तीव्र असंतोष व्याप्त था।
5. रूस- जापान युद्ध
रूस को 1904-05 में रूस-जापान युद्ध में पराजित होना प़डा। जापानियों ने रूसियों को जल और थल दोनों स्थानों पर बुरी तरह पराजित करके रूस की प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला दिया। रूस की पराजय से निकोलस द्वितीय के अयोग्य और भ्रष्ट शासन की सर्वत्र आलोचना की गई और वहां सुधारों की मांग प्रबल हो गई, इसके परिणामस्वरूप रूस में 1905 की क्रांति के लिए अनुकूल वातावरण बन गया।
6. 1905 की क्रांति
22 जनवरी 1905 को दो लाख मजदूरों ने फादर गेपन के नेतृत्व में जार निकोलस के राजमहल के सामने प्रदर्शन किया और सुधारों की मांग की, परंतु जार के सैनिकों ने क्रांतिकारियों पर गोलियों की वर्षा प्रारम्भ कर दी जिससे अनेक व्यक्ति हताहत हुए। जार की इस रक्तपातपूर्ण कार्यवाही से रूसियों में तीव्र असंतोष उत्पन्न हुआ।
7. किसानों की शोचनीय स्थिति
रूस के किसानों की दशा बड़ी दयनीय थी। यद्यपि 1861 में जार एलेक्जेंडर द्वितीय ने बंधुआ खेत मजदूर प्रथा का अंत कर दिया परंतु इससे भी उनकी दशा में विशेष सुधार नही हुआ। देहातों में हर जगह गरीबी, भुखमरी और बीमारी फैली हुई थी। परिणामस्वरुप किसानों में तीव्र असंतोष व्याप्त था।
8. निहिलिटक आंदोलन
1870 के पश्चात कुछ क्रांतिकारियों ने अराजकता के द्वारा रूस में जारशाही का अंत करने का प्रयास किया। वे निहिलिस्ट कहलाते थे और रूस में प्रचलित सभी संस्थाओं को नष्ट कर देना चाहते थे। समाज का नये सिरे से निर्माण करना चाहते थे और प्राचीन रुढियों को नष्ट करने के लिए दृढ़ - प्रतिज्ञ थे। निहिलिस्ट आंदोलन के परिणामस्वरूप रूस के जार एलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या कर दी गई।
9. लेखकों का योगदान
रूसी क्रांति में लेखकों व दार्शनिकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। लेखकों में टॉलस्टॉय, तुर्गनेव, डोस्टोइवस्की, बाकुनिन के नाम उल्लेखनीय है। टॉलस्टॉय, तुर्गनेव तथा डोस्टोइवस्की की रचनाओं ने रूस की शिक्षित जनता को अत्यधिक प्रभावित किया। कार्ल मार्क्स के समाजवादी विचारों ने मजदूरों को पर्याप्त रूप से प्रभावित किया। इस प्रकार लेखकों व दार्शनिकों ने रूसी जनता में क्रांति के बीज वो दिये।
10. प्रजातंत्र का दमन
1905 की क्रांति के पश्चात जार निकोलस द्वितीय ने रूसी जनता को संतुष्ट के लिए ड्यूमा के निर्माण की घोषणा की परंतु यह केवल आडम्बर मात्र था। उसने प्रथम ड्यूमा को 1907 में भंग कर अपनी निरंकुश प्रवृत्ति का परिचय दिया।जार ने एक नये नियम के अनुसार मताधिकार अत्यंत सीमित कर दिया जिसके परिणामस्वरूप तृतीय ड्यूमा में प्रतिक्रियावादी जमींदारों का बहुमत स्थापित हो गया। परंतु रूसी लोग अब स्वतंत्रता और राजनैतिक अधिकारों का स्वाद ले चुके थे अब वे किसी भी कीमत पर निरंकुश शासन को सहन करने के लिए तैयार नहीं थे।
11. भ्रष्ट शासन व्यवस्था
निकोलस द्वितीय की दुर्बलता और अयोग्यता के कारण शासन-व्यवस्था में भ्रष्टाचार व्याप्त था। शासन में अयोग्य और भ्रष्ट अधिकारियों एवं सामंतों का बोलबाला था, जो जनता के हित की सर्वथा उपेक्षा करते थे। जार व जारीना पर रासपुटित नामक अंधविश्वासी साधु का अत्यधिक प्रभाव था। ऐसे भ्रष्ट और दमनकारी शासन के कारण रूसी जनता में तीव्र आक्रोश व्याप्त था। अन्त में 1916 में रासपुटित की हत्या कर दी गई परन्तु अभी जार का सिंहासन उलटना बाकी रह गया था।
12. समाजवाद का विकास
1883 से रूस में मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव बढ़ने लगा। कुछ समय पश्चात समाजवादी दो दलों में विभाजित हो गए -
- क्रान्तिकारी समाजवादी दल
- सोशल डेमोक्रेटिक दल
क्रान्तिकारी समाजवादी दल किसानों को संगठित करके देश में क्रांति लाना चाहता था। सोशल डेमोक्रेटिक दल रूस में सर्वहारा (किसान, मजदूर आदि) का शासन स्थापित करना चाहता था। जारशाही ने समाजवादी विचारों को रोकने का भरसक प्रयत्न किया परंतु मजदूरों और किसानों के बढ़ते हुए असंतोष के कारण समाजवादी विचारों का रूस में तीव्र गति से प्रसार हुआ।
13. प्रथम विश्वयुद्ध
अगस्त 1914 में रूस ने प्रथम महायुद्ध में प्रवेश किया परंतु कुछ ही समय बाद जर्मनी के विरुद्ध रूसी सेनाएं पराजित होने लगी। इन पराजयों से रूसी नागरिकों का मनोबल गिर गया और असंतोष बढ़ने लगा। 1916-17 के शीतकाल में सारे देश में घोर असंतोष व्याप्त हो गया। एक ओर तो सेनाओं की निरंतर हार के अपमान से जनता क्षुब्ध थी दूसरी ओर अनाज, ईधन, कपड़े आदि की कमी होने लगी और देश में अकाल की आशंका होने लगी। असंतोष बढ़ता गया। स्थान- स्थान पर किसानों के दंगे और मजदूरों की हड़तालें होने लगीं।
1917 की Rus Ki Kranti की शुरूआत
8 मार्च 1917 को पेत्रोग्राद में मजदूरों ने हड़ताल कर दी और सड़कों पर नारे लगाते हुए लूट-पाट करने लगे। मजदूर स्त्रियाँ भी इसमें सम्मिलित हो गयी। 10 मार्च को पेत्रोग्राद के सभी कारखानों में हड़ताल हो गई। सैनिकों ने क्रान्तिकारियों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया, जिससे क्रान्तिकारियों की हिम्मत और भी बढ़ गई।
11 मार्च को जार ने ड्यूमा को भी भंग कर दिया। 14 मार्च को उदारवादी नेता जार्ज ल्वाब के नेतृत्व में एक अस्थायी सरकार का गठन किया गया। 15 मार्च को जार निकोलस द्वितीय ने सिंहासन का परित्याग कर दिया। इस प्रकार रूस में रोमोनोव वंश के शासन का अंत हो गया और उनके स्थान पर नई क्रांतिकारी सरकार स्थापित हो गई।
शीघ्र ही ल्वाब को भी त्याग पत्र देना पड़ा और करेन्स्की ने नये मंत्रिमण्डल का गठन किया। करेन्स्की की सरकार को अनेक जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ा रहा था। देश में खाद्य-सामग्री औद्योगिक उत्पादन में कमी होती जा रही थी। लेनिन ने इस परिस्थिति का लाभ उठाकर पुनः किसानों, मजदूरों और सैनिकों को संगठित करना शुरू कर दिया। 6-7 नवम्बर की रात्रि को बोल्शेविक दल के स्वयंसेवकों ने टेलिफोन केंद्र, डाकघर, बिजलीघर, रेलवे-स्टेशन, सरकारी बैंक आदि सरकारी भवनों पर अधिकार कर लिया। करेन्स्की भाग निकला और सरकार के अन्य सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए। इस प्रकार कुछ घण्टों में बिना रक्तपात के रूस की राजधानी पर बोल्शेविक दल का आधिपत्य स्थापित हो गया।
रूसी क्रांति का महत्व और उसके परिणाम
1. किसान मजदूरों की दशा में सुधार
2. पूंजीवादी व्यवस्था का अंत
3. नवीन संस्कृति, नवीन विचारधारा का प्रसार
4. आर्थिक स्वतंत्रता
5. औद्योगिक क्षेत्र में उन्नति
6. सामाजिक क्षेत्र में परिवर्तन
7. धार्मिक क्षेत्र में परिवर्तन
8. नवीन संविधान का निर्माण
9. साम्राज्यवाद और पूंजीवादी पर कुठाराघात
10. ट्रेड यूनियन आंदोलन को प्रोत्साहन
11. अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में तनाव
12. जारशाही का अंत
13. रूस में गृह -युद्ध
14. मार्क्सवादी विचारधारा का प्रचार
15. जमींदारी प्रथा का अंत
FAQs
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