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प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918): कारण तथा इसके परिणाम | Pratham Vishwa Yudh का इतिहास

'Pratham Vishwa Yudh' (1st World War in Hindi) विश्व इतिहास की एक अतिमहत्वपूर्ण घटना है। प्रथम विश्व युद्ध कोई अचानक से घटित होने वाली घटना नहीं थी बल्कि इसके आधारभूत कारण बहुत पहले से ही विद्यमान थे। इस लेख में हम जानेंगे की Pratham Vishwa Yudh के घटित होने के पीछे कौन-कौन से कारण उत्तरदायी थे? तथा इस युद्ध के क्या परिणाम रहें? 


Pratham Vishwa Yudh

Table of Content

प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि - Pratham Vishwa Yudh

यद्यपि प्रथम विश्वयुद्ध 1914 में प्रारंभ हुआ था परंतु युद्ध के आधारभूत कारण बहुत पहले से ही विद्यमान थे। उग्र राष्ट्रीयता की भावना, साम्राज्य विस्तार की आकांक्षा, गुटबंदी और हथियारों की प्रतिस्पर्धा आदि के कारण युद्ध के बादल बहुत पहले से ही मंडरा रहे थे। बिस्मार्क ने अपने कूटनीतिकता से 1882 में जर्मनी, इटली और ऑस्ट्रिया के साथ त्रिपक्षीय संधि (Triple Alliance) कर गुट का निर्माण किया था परंतु बिस्मार्क के पतन के बाद कूटनीतिक क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। 


1907 में त्रिपक्षीय गुट के मुकाबले में इंग्लैंड, फ्रांस और रूस के त्रिपक्षीय सौहार्द (Triple Entente) संघ का निर्माण हुआ। इस गुटबंदी के कारण यूरोपीय राष्ट्रों में परस्पर ईर्ष्या, संदेह और वैमनस्यता की भावना उत्पन्न हुई। 1907 के पश्चात यूरोप में ऐसी अनेक घटनाएं घटी जिन्होंने हथियारों की प्रतिस्पर्धा और गुटबंदी को और भी प्रबल बना दिया। ऐसे अशांत वातावरण में 28 जून, 1914 को ऑस्ट्रिया के राजकुमार आर्च ड्यूक फर्डिनेंड की सेराजेवो में हत्या कर दी गई। इस घटना ने बारूद में चिंगारी का काम किया और 28 जुलाई, 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध की घोषणा कर दी। शीघ्र ही जर्मनी, रूस, फ्रांस, इंग्लैंड आदि भी युद्ध में कूद पड़े। इस प्रकार मानव-जाति को भयंकर महायुद्ध का सामना करना पड़ा। 


Pratham Vishwa Yudh के कारण - 1st World War Reason in Hindi

1. साम्राज्यवाद एवं आर्थिक प्रतिद्वंद्विता

औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप यूरोप के प्रमुख राज्य अर्थात इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी आदि कच्चा माल प्राप्त करने तथा अपने तैयार माल को बेचने के लिए नए बाजारों की तलाश में थे। अतः 1870 के बाद यूरोपीय राज्यों में अफ्रीका और एशिया के विभिन्न भागों में उपनिवेश स्थापित करने की प्रतिस्पर्धा आरंभ हो गई। यद्यपि अफ्रीका के विभाजन के लिए कोई युद्ध नहीं लड़ा गया किंतु उसके कारण यूरोपीय राज्यों में पारस्परिक तनाव में वृद्धि अवश्य हुई। इटली और फ्रांस तथा इंग्लैंड और फ्रांस के बीच मूलतः औपनिवेशिक समस्याओं के कारण कटुता उत्पन्न हुई।


2. राष्ट्रीयता की भावना 

जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, इटली आदि देशों में उग्र राष्ट्रीयता की भावना का अधिक प्रचार था। प्रत्येक देश अपनी सभ्यता और संस्कृति को ही श्रेष्ठ समझता था और अन्य देशों एवं उनकी संस्कृतियों को तुच्छ मानता था। उग्र राष्ट्रीयता की भावना के कारण फ्रांसीसी, जर्मनी से लॉरेन तथा अल्सास के प्रदेश वापस लेने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे। बाल्कन राज्यों में भी उग्र राष्ट्रीयता का उदय हो चुका था। बलगारिया ने वृहत बलगारिया के निर्माण के लिए विस्तारवादी नीति अपनाई। इसी प्रकार रूस में सर्व-स्लावादियों ने स्लाव जाति को संगठित करने एवं शक्तिशाली बनाने के लिए बहुत प्रचार किया। अतः उग्र राष्ट्रीयता की भावना के कारण विभिन्न राष्ट्रों के बीच घृणा और द्वेष की भावना फैली हुई थी। 


3. हथियारों की होड़ 

यूरोप के शक्तिशाली देश हथियारों की दौड़ में भाग ले रहे थे। प्रत्येक देश अपनी सैनिक शक्ति में वृद्धि करने के लिए प्रयत्नशील था। जर्मनी के सम्राट विलियम द्वितीय ने जर्मनी को सैनिक दृष्टि से सर्वशक्तिशाली बनाने का प्रयत्न किया, जिसके परिणामस्वरुप 1914 तक जर्मन सैनिकों की संख्या 8,50,000 तक पहुंच गई। फ्रांस ने भी अधिक से अधिक सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार किया। जर्मनी ने नौसेना को बढ़ाने तथा उसे शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न किया। इसी प्रकार सैन्यवाद एवं शस्त्रीकरण की प्रतिस्पर्धा के कारण सर्वत्र भय, आशंका एवं पारस्परिक घृणा का वातावरण बना हुआ था। 


4. गुप्त सन्धियाँ 

फ्रांस की पराजय के बाद बिस्मार्क ने गुटबंदी की प्रथा का आरंभ किया। अतः उसने 1882 में त्रिपक्षीय गुट (Triple Alliance) निर्माण किया जिसमें जर्मनी, इटली और ऑस्ट्रिया सम्मिलित थे। विलियम द्वितीय की अदूरदर्शिता के कारण 1907 में रूस, इंग्लैंड और फ्रांस के मध्य त्रिपक्षीय सौहार्द (Triple Entente) के संघ का निर्माण हुआ और समस्त यूरोप दो विरोधी सशस्त्र गुटों में विभाजित हो गया। इस गुटबंदी और गुप्त संधियों की प्रणाली ने अनेक राष्ट्रों के मध्य घृणा, अविश्वास, ईर्ष्या और वैमनस्यता की भावना उत्पन्न की और हथियारों की होड़ को तीव्र बना दिया। 


5. जर्मनी और इंग्लैंड के मध्य शत्रुता 

जर्मन सम्राट विलियम द्वितीय की अदूरदर्शिता और उग्रवादिता के कारण जर्मनी और इंग्लैंड के मध्य शत्रुता बढ़ती चली गई। इंग्लैंड द्वारा अफ्रीका में औपनिवेशिक विस्तार करना विलियम द्वितीय के लिए असह्य था। 1896 में ट्रांसवेल में जेम्सन के सैनिक अभियान की असफलता पर विलियम द्वितीय ने राष्ट्रपति क्रुगर को तार भेजा जिससे इंग्लैंड की जनता में जर्मनी के प्रति आक्रोश उत्पन्न हुआ। इसके अतिरिक्त जर्मन सम्राट ने अपनी नौसेना का विस्तार करना शुरू कर दिया। फलस्वरुप इंग्लैंड ने भी अपनी नौसेना का विस्तार करना प्रारंभ कर दिया, जिससे दोनों देशों के बीच कटुता और अधिक बढ़ने लगी। विलियम द्वितीय ने तुर्की के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित किया और 1902 में तुर्की से समझौता करके बर्लिन से बगदाद तक एक रेलवे लाइन बनाने का अधिकार प्राप्त कर लिया। इंग्लैंड ने इसका घोर विरोध किया क्योंकि उसे जर्मनी से अपने उपनिवेशों - मिश्र और भारत को खतरा पैदा हो गया था। 


6. विलियम द्वितीय की महत्वाकांक्षाएं 

जर्मन सम्राट विलियम द्वितीय एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। वह जर्मनी को समस्त विश्व की प्रधान शक्तियां बनाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ था। वह गर्व से कहता था कि "मेरा उद्देश्य विश्व शक्ति प्राप्त करना अथवा पतन के लिए तैयार रहना है"। उसने घोषित किया था कि विश्व में कहीं पर भी कोई ऐसा कार्य नहीं होना चाहिए जिसमें जर्मनी की सहमति न ली जाए। इस प्रकार अपने उग्र तथा साम्राज्यवादी चरित्र द्वारा विलियम द्वितीय ने यूरोप को युद्ध तक पहुंचाने में बहुत योगदान दिया। 


7. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का अभाव 

प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व विभिन्न राष्ट्रों में सीमा संबंधी विवाद प्रचलित थे। परंतु दुर्भाग्य से उस समय यूरोप में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का अभाव था, जो विभिन्न देशों के आपस के झगड़ों का समाधान कर विश्व युद्ध को रोकने का प्रयास करता। अतः प्रत्येक राष्ट्र अपने विवादों को सैनिक शक्ति के बल पर सुलझाने का प्रयत्न करने लगा। 


8. समाचार-पत्रों का प्रभाव 

उस समय सभी राष्ट्रों के समाचार पत्र उग्र राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर घटनाओं को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते थे और जनमत को भड़कते थे। वह अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ तथा अन्य देशों की अन्य देशों को संस्कृतिहिन सिद्ध करने का प्रचार कर रहे थे। यह समाचार पत्र अपने प्रतिद्वंदी राष्ट्रों पर कीचड उछालते रहते थे, जिससे इन राष्ट्रों के बीच कटुता बनी रहती थी। फ्रांस और जर्मनी के संबंधों को बिगाड़ने में फ्रांस के समाचार पत्रों का बड़ा प्रभाव रहा। 


9. अंतर्राष्ट्रीय अराजकता 

1900 ई. के बाद ऐसी अनेकों घटनाएँ घटी जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय वातावरण को तनावपूर्ण बना दिया था। ये प्रमुख घटनाएं निम्नलिखित थी -

A. रूस-जापान युद्ध 

1904-05 में रूस-जापान के युद्ध ने यूरोपीय राजनीति को प्रभावित किया। रूस की पराजय के कारण उसकी दुर्बलता से लाभ उठाते हुए जर्मनी ने मोरक्को में फ्रांस को चुनौती दी और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में गंभीर स्थिति उत्पन्न कर दी। इसके अतिरिक्त जब रूस को पूर्व में विस्तार करने का अवसर नहीं मिला तो उसने बाल्कन देशों में अनुचित हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया, जिससे बाल्कन क्षेत्र की राजनीति जटिल होती चली गई। 


B. मोरक्को संकट 

1911 में मोरक्को में राष्ट्रवादियों के विद्रोह का दमन करने के लिए जब फ्रांस ने अपनी सेनाएं भेजी तो जर्मनी ने इसका विरोध किया और अपना पैंथर नामक युद्धपोत अगाडिर बंदरगाह में भेज दिया। इससे दोनों देशों में युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई परंतु इंग्लैंड की चेतावनी के कारण जर्मनी को झुकना पड़ा और फ्रांस के साथ शांतिपूर्ण समझौता करने के लिए बाध्य होना पड़ा। यद्धपि मोरक्को का संकट टल गया परंतु जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता पराकाष्ठा पर पहुंच गई। इसके अतिरिक्त इस घटना से जर्मनी और इंग्लैंड के बीच भी कटुता उत्पन्न हुई। 


C. ऑस्ट्रिया द्वारा बोस्निया तथा हर्जगोविना पर अधिकार करना 

1908 में आस्ट्रिया ने बर्लिन समझौते का उल्लंघन करते हुए बोस्निया तथा हर्जगोविना को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। रूस ने ऑस्ट्रिया की कार्यवाही का घोर विरोध करते हुए उसे युद्ध की धमकी दी। इस अवसर पर जर्मनी ने अपने मित्र ऑस्ट्रिया का पक्ष लिया और रूस को चेतावनी दी की ऑस्ट्रिया पर हमला जर्मनी पर हमला माना जाएगा। अतः जर्मनी की धमकी के कारण रूस ऑस्ट्रिया के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर सका। इस घटना से ऑस्ट्रिया और सर्बिया में भी घोर शत्रुता उत्पन्न हो गई। 


D. इटली का ट्रिपोली पर आक्रमण 

अगाडिर के संकट से लाभ उठाकर इटली ने 1911 में ट्रिपोली पर आक्रमण कर दिया। तुर्की कुछ समय तक इटली की मांगों को टालता रहा किंतु अक्टूबर, 1912 में तुर्की ने ट्रिपोली पर इटली का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। इटली के आक्रमण का बाल्कन क्षेत्र में भी प्रभाव पड़ा। इस युद्ध से तुर्की की दुर्बलता प्रकट हो गई और बाल्कन राज्यों को तुर्की के विरुद्ध संगठित होने की प्रेरणा मिली। 


E. बाल्कन युद्ध 

1912-13 के बाल्कन युद्धों ने भी अंतरराष्ट्रीय वातावरण को अत्यंत तनावपूर्ण बना दिया था। युद्धों के कारण सैन्यवाद और शस्त्रीकरण की दौड़ और तेज हो गई। इन युद्धों के परिणामस्वरू सर्बिया और ऑस्ट्रिया के बीच शत्रुता में और भी वृद्धि हुई। बल्गारिया तो सर्वाधिक असंतुष्ट राज्य था क्योंकि सर्बिया, यूनान आदि राज्यों ने उससे उसका बहुत-सा भाग छीन लिया था। 


10. तात्कालिक कारण - ऑस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या

28 जून, 1914 को ऑस्ट्रिया के राजकुमार आर्च ड्यूक फर्डिनेंड तथा उसकी पत्नी की बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में हत्या कर दी गई। इस घटना से ऑस्ट्रिया में सर्बिया के विरुद्ध तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ। अतः 23 जुलाई, 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया को एक अल्टीमेटम भेजा और 48 घंटे की अंदर उसकी शर्तों को पूरा करने के लिए कहा गया। यद्धपि सर्बिया ने अधिकांश शर्तों को स्वीकार कर लिया था परंतु उसने यह शर्त मानने से इनकार कर दिया था कि ऑस्ट्रिया के अधिकारियों को सर्बिया में जाँच-पड़ताल में भाग लेने की अनुमति दी जाए। अतः ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के उत्तर को असंतोषजनक मानते हुए 28 जुलाई, 1914 को उसके विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। रूस ने सर्बिया का पक्ष लेते हुए ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। जर्मनी ने ऑस्ट्रिया का साथ दिया और 1 अगस्त, 1914 को रूस के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इंग्लैंड और फ्रांस भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध में कूद पड़े। इस प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हुआ। 



Pratham Vishwa Yudh के परिणाम

प्रथम विश्व युद्ध के निम्नलिखित परिणाम हुए -

1. जन-धन की अपार हानि  

1914 के प्रथम विश्वयुद्ध में जन-धन की अपार हानि हुई। इस युद्ध में लगभग 1 करोड़ 30 लाख सैनिक मारे गए, 2 करोड़ 20 लाख सैनिक घायल हुए, जिनमें से 70 लाख व्यक्ति स्थाई रूप से अपंग हो गए। युद्धों के संचालन में दोनों पक्षों को 186 अरब डॉलर खर्च करने पड़े। 


2. आर्थिक परिणाम 

भारी आर्थिक विनाश के कारण यूरोप की जनता को अनेक वर्षों तक आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। उपज बहुत कम हो गई, कीमतें बढ़ने लगी, मुद्रा की कीमतें भी गिरने लगी और व्यापार व्यवसाय अस्त-व्यस्त हो गया। 


3. राजनीतिक परिणाम 

जर्मनी, रूस ऑस्ट्रिया, हंगरी, बल्गारिया आदि देशों में राजतंत्र के शासन की समाप्ति के पश्चात गणतंत्र की स्थापना हुई। राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ। जर्मनी को अंतरराष्ट्रीय शांति भंग करने के लिए उत्तरदायी ठहराया गया और उसे वर्साय की संधि स्वीकार करने के लिए बाधित किया गया। इसके अतिरिक्त तुर्की के साथ भी अलग-अलग शांति संधि की गई और उसकी सैन्य शक्ति को भी पर्याप्त कम कर दिया गया। 


4. प्रजातंत्र की भावना का विकास

प्रथम विश्व युद्ध से राजतंत्र को भारी आघात पहुंचा और प्रजातंत्रीय भावना का विकास हुआ। युद्ध के उपरांत यूरोप में अनेक नए गणतंत्र स्थापित हुए - जर्मनी, ऑस्ट्रिया, पोलैंड, रूस चेकोस्लोवाकिया, एस्टोनिया, लिथुआनिया,लातविया, फ़िनलैंड यूक्रेन और तुर्की। 


5. सामाजिक परिणाम 

सामाजिक क्षेत्र में भी विश्वयुद्ध के बड़े महत्वपूर्ण परिणाम हुए। स्त्रियों को राजनीतिक अधिकार प्रदान किये जाने लगे। लाखों पुरुषों के मारे जाने से अनेक देशों में पुरुषों की संख्या कम हो गई और उनकी अपेक्षा स्त्रियों की संख्या बढ़ गई, इसका पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन पर बड़ा अनिष्टकारी प्रभाव पड़ा। 


6. समाजवाद की प्रगति 

महायुद्ध के उपरांत विश्व में समाजवाद की भावना का विकास हुआ। मजदूरों की दशा सुधारने के लिए आंदोलन शुरू हो गए। मजदूरों को मालिकों के विरुद्ध संगठन बनाने एवं हड़ताल करने का भी अधिकार प्रदान किया गया। रूस में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई। 


7. राष्ट्रीयता की भावना का विकास 

विश्वयुद्ध के पश्चात राष्ट्रीयता को विशेष महत्व दिया गया। राष्ट्रीयता के आधार पर चेकोस्लोवालिया, युगोस्लोवाकिया हंगरी, पोलैंड, लिथुआनिया और फिनलैंड का निर्माण हुआ। 


8. राष्ट्र संघ की स्थापना 

अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन के सुझाव पर राष्ट्रीय संघ की स्थापना की गई। ताकि विश्व शांति और सुरक्षा का वातावरण स्थापित किया जाए और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान किया जाए। 


9. तानाशाही का उदय 

प्रथम महायुद्ध के पश्चात इटली और जर्मनी में तीव्र असंतोष था। वहां की जनतंत्रीय सरकारें अयोग्य और दुर्बल सिद्ध हुई। अतः इटली में फासीवाद और जर्मनी में नाजीवाद नामक तानाशाही का उदय हुआ। 


10. सैन्यवाद 

यूरोप में राजनीतिज्ञों ने प्रथम विश्व युद्ध के भयानक नरसंहार से कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की। पारस्परिक शंका के कारण विभिन्न राष्ट्र सैनिकवाद के उपासक बने रहे और विनाशकारी हथियारों का निर्माण करते रहे। 


FAQs

1. Pratham Vishwa Yudh Kab Hua Tha?
Ans. 1914 से 1918

2. Pratham Vishwa Yudh Ke Karan
Ans. साम्राज्यवाद एवं आर्थिक प्रतिद्वंद्विता, उग्र राष्ट्रीयता की भावना, हथियारों की होड़, गुप्त सन्धियाँ तथा ऑस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या आदि घटनाएँ प्रथम विश्वयुद्ध का कारण बनी। 


3. Pratham Vishwa Yudh Kab Se Kab Tak Chala?
Ans. प्रथम विश्‍व युद्ध 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 के बीच लड़ा गया था। 

4. Pratham Vishwa Yudh Mein Kiski Haar Hui?
Ans.

5. Kis Sandhi Ke Tahat Rus Pratham Vishwa Yudh Se Bahar Ho Gaya?
Ans. ब्रेस्ट-लिटोव्स्क की संधि

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