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भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है? इसके मूल तत्व और इसका महत्व

प्रस्तावना (Preamble) भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है, इसमें संविधान का सार निहित है। आज के इस लेख में हम भारत के संविधान की प्रस्तावना (Preamble of Indian Constitution in Hindi) के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे और जानेंगे की प्रस्तावना क्या होती है और इसका क्या महत्व है?


Preamble of Indian Constitution in Hindi


Table of Content


'प्रस्तावना' क्या होती है? - What is Preamble in Hindi

प्रस्तावना/उद्देशिका (Preamble) संविधान (Constitution) के परिचय अथवा भूमिका को कहते है। इसमें संविधान का सार होता है। 

सर्वप्रथम अमेरिकी संविधान में प्रस्तावना को सम्मिलित किया गया था। इसके बाद कई देशों ने इसे अपनाया जिसमें भारत भी शामिल है। 


भारतीय संविधान की प्रस्तावना - Preamble of Indian Constitution in Hindi

भारतीय संविधान की प्रस्तावना पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा बनाए, पेश किए गए और संविधान द्वारा अपनाये गए उद्देश्य प्रस्ताव (Objectives Resolution) पर आधारित है। एन. ए. पालकीवाला ने प्रस्तावना को 'संविधान का परिचय पत्र' कहा है। 


42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा प्रस्तावना में संशोधन कर समाजवादी (Socialism), पंथनिरपेक्ष  (Secularism) और अखंडता (Integrity) शब्दों को सम्मिलित किया गया था। 42वें संविधान संशोधन को 'Mini Constitution' भी कहा जाता है। 



Preamble of Indian Constitution in Hindi


हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, 
समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य 
बनाने के लिए तथा इसके समस्त नागरिकों को: 

सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म
और उपासना की स्वतंत्रता

प्रतिष्ठा और अवसर की समता 
प्राप्त करने के लिए, 

तथा इन सब में व्यक्ति की गरिमा और 
राष्ट्र की एकता तथा अखंडता 
सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए 

दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। 


संविधान की प्रस्तावना के तत्व 

संविधान की प्रस्तावना में 4 मूल तत्व हैं -

1. संविधान के अधिकारों का स्रोत 

प्रस्तावना कहती है कि संविधान भारत के लोगों से शक्ति अधिग्रहित करता है। 

2. भारत की प्रकृति 

भारत के संविधान की प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक व गणतांत्रिक राजव्यवस्था वाला देश है।

3. संविधान के उद्देश्य 

इसके अनुसार न्याय, स्वतंत्रता, समता व बंधुत्व संविधान की उद्देश्य हैं।

4. संविधान के लागू होने की तिथि 

यह 26 नवंबर 1949 ई. की स्थिति का उल्लेख करती है। 


भारत के संविधान में निहित शब्दों के अर्थ - Preamble of Indian Constitution in Hindi

1. संप्रभु - Sovereignty 

संप्रभु शब्द का आशय है कि भारत ना तो किसी अन्य देश पर निर्भर है और ना ही किसी अन्य देश का डोमिनियन  (अधिराज्य) है। इसके ऊपर कोई और शक्ति नहीं है और यह अपने मामलों (आंतरिक अथवा बाहरी) का निस्तारण करने के लिए स्वतंत्र है। 

एक संप्रभु राज्य होने के नाते भारत किसी विदेशी सीमा अधिग्रहण अथवा किसी अन्य देश के पक्ष में अपनी सीमा के किसी हिस्से पर से दावा छोड़ सकता है। 


2. समाजवादी - Socialism 

42वें संविधान संशोधन, 1976 से पहले भी भारत के संविधान में नीति निर्देशक सिद्धांतों के रूप में समाजवादी लक्षण मौजूद थे। दूसरे शब्दों में, जो बात पहले संविधान में अन्तर्निहित थी, उसे अब स्पष्ट रूप से जोड़ दिया गया। 

यह बात ध्यान देने योग्य है कि भारतीय समाजवाद लोकतांत्रिक समाजवाद है न की साम्यवादी समाजवाद।


3. पंथनिरपेक्ष/धर्मनिरपेक्षता - Secularism 

पंथनिरपेक्ष शब्द को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा जोड़ा गया था। यद्धपि 'पंथनिरपेक्ष राज्य' शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख संविधान में नहीं किया गया था लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि संविधान के निर्माता ऐसे ही राज्य की स्थापना करना चाहते थे। इसलिए संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार जोड़े गए हैं। 

भारतीय संविधान में पंथनिरपेक्षता की सभी अवधारणाएं विद्यमान है अर्थात हमारे देश में सभी धर्म समान है और उन्हें सरकार का समान समर्थन प्राप्त है।  


पंथनिरपेक्ष राज्य क्या होता है?

पंथनिरपेक्ष राज्य से तात्पर्य एक ऐसे राज्य से है -

  • जिसका कोई राजकीय धर्म न हो। 
  • राज्य अपने नागरिकों के बीच धर्म के आधार पर भेदभाव न करता हो। 
  • सभी धर्मों के अनुयायियों को समान रूप से धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो। 


4. लोकतान्त्रिक - Democratic 

संविधान की प्रस्तावना में एक लोकतांत्रिक राजव्यवस्था की परिकल्पना की गई है। यह प्रचलित संप्रभुता के सिद्धांत पर आधारित है अर्थात सर्वोच्च सत्ता जनता के हाथों में है। 

लोकतंत्र दो प्रकार का होता है -

  • प्रत्यक्ष लोकतंत्र
  • अप्रत्यक्ष लोकतंत्र 


A. प्रत्यक्ष लोकतंत्र

प्रत्यक्ष लोकतंत्र में लोग शक्ति का इस्तेमाल प्रत्यक्ष रूप से करते हैं। 

उदाहरण: स्विट्जरलैंड में


B.अप्रत्यक्ष लोकतंत्र 

अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि सर्वोच्च शक्ति का इस्तेमाल करते हैं और सरकार चलाते हुए कानून का निर्माण करते हैं। इस प्रकार के लोकतंत्र को 'प्रतिनिधि लोकतंत्र' भी कहा जाता है। 


अप्रत्यक्ष लोकतंत्र दो प्रकार का होता है - 

  1. संसदीय लोकतंत्र 
  2. राष्ट्रपति के अधीन 

  • भारतीय संविधान में प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था है। जिसमें कार्यकारिणी अपनी सभी नीतियों और कार्यों के लिए विधायिका के प्रति जवाबदेह है। 

  • संविधान की प्रस्तावना में लोकतांत्रिक शब्द का इस्तेमाल वृहत रूप में किया गया है। जिसमें न केवल राजनैतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र को भी शामिल किया गया है। 

  • वयस्क मताधिकार, सामयिक चुनाव, कानून की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता व भेदभाव का अभाव आदि भारतीय राजव्यवस्था के लोकतांत्रिक लक्षण के स्वरूप है। 

5. गणतंत्र - Republic 

एक लोकतांत्रिक राजव्यवस्था को दो वर्गों में बांटा जा सकता है -

A. राजशाही - इस व्यवस्था का प्रमुख (आमतौर पर राजा या रानी) उत्तराधिकारिता के माध्यम से पद पर आसीन होता है।  उदाहरण: ब्रिटेन में


B. गणतंत्र - गणतंत्र में राज्य प्रमुख हमेशा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक निश्चित समय के लिए चुना जाता है। उदाहरण: अमेरिका में

  • इसलिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना में गणतंत्र का अर्थ यह है कि भारत का प्रमुख अर्थात राष्ट्रपति चुनाव के जरिए सत्ता में आता है। राष्ट्रपति का चुनाव 5 वर्ष के लिए अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। 

गणतंत्र के अर्थ में दो बातें और शामिल है -
  • राजनैतिक संप्रभुता एक व्यक्ति के हाथ में होने की बजाय लोगों के हाथ में होती हैं। 
  • किसी भी विशेषाधिकार की अनुपस्थिति, इसलिए हर कार्यालय बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के लिए खुला होगा। 

6. न्याय - Justice 

  • प्रस्तावना में न्याय तीन विभिन्न रूपों में शामिल है - सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक 
  • इनकी रक्षा मौलिक अधिकार व नीति निर्देशक सिद्धांतों के विभिन्न उपबंधों के जरिए की जाती है। सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय के तत्वों को 1917 की रूसी क्रांति से लिया गया है। 


A. सामाजिक न्याय 

इसका अर्थ है कि हर व्यक्ति के साथ जाति, रंग, धर्म, लिंग आदि के आधार पर बिना भेदभाव के समान व्यवहार किया जाएगा। इसका मतलब है समाज में किसी वर्ग विशेष के लिए विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति। अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग तथा महिलाओं की स्थिति में सुधार। 


B. आर्थिक न्याय 

इसका अर्थ है कि आर्थिक कारणों के आधार पर किसी भी व्यक्ति से भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसमें संपदा, आय व संपत्ति की असमानता को दूर करना भी शामिल है। 

  • सामाजिक व आर्थिक न्याय का मिला-जुला रूप अनुपाती न्याय को परिलक्षित करता है। 


C. राजनीतिक न्याय 

हर व्यक्ति को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होगे, चाहे वह राजनीतिक दफ्तर में प्रवेश की बात हो या अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का अधिकार। 


7. स्वतंत्रता - Liberty

स्वतंत्रता का अर्थ है लोगों की गतिविधियों पर किसी भी प्रकार की रोक-टोक की अनुपस्थिति तथा साथ ही व्यक्ति के विकास के लिए अवसर प्रदान करना। प्रस्तावना हर व्यक्ति के लिए मौलिक अधिकारों के जरिए अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता सुरक्षित करती है। इसके हनन के मामले में कानून का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। 

स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल संविधान में लिखी सीमाओं के भीतर ही किया जा सकता है। संक्षेप में कहे तो प्रस्तावना में प्रदत्त स्वतंत्रता एवं मौलिक अधिकार शर्तरहित नहीं है। हमारी प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के आदर्शों को फ्रांस की क्रांति से लिया गया है। 


8. समता - Equality 

समता का अर्थ है, किसी भी वर्ग के लिए विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति और बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करने के उपबंध। भारतीय प्रस्तावना हर नागरिक को स्थिति और अवसर की समता प्रदान करती है। इस उपबंध में समता के तीन आयाम शामिल है - नागरिक, राजनीतिक व आर्थिक। 


9. बंधुत्व - Fraternity

बंधुत्व का अर्थ है - भाईचारे की भावना 

संविधान एकल नागरिकता के एक तंत्र के माध्यम से भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करता है। मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51क) भी कहता है कि यह हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह भाषायी, धार्मिक, क्षेत्रीय अथवा वर्ग विविधता से ऊपर उठ सौहार्द और आपसी भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करेगा। 


प्रस्तावना कहती है की बंधुत्व में दो बातों को सुनिश्चित करना होगा -

  • व्यक्ति का सम्मान 
  • देश की एकता और अखंडता


  • 'अखंडता' शब्द को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था। 
  • 'देश की एकता और अखंडता' शब्द में राष्ट्रीय अखंडता के दोनों मनोवैज्ञानिक और सीमायी आयाम शामिल है। 
  • संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत का वर्णन राज्यों के संघ के रूप में किया गया है ताकि यह बात स्पष्ट हो जाए कि राज्यों को संघ से अलग होने का कोई अधिकार नहीं है। इससे भारतीय संघ की बदली न जा सकने वाली प्रकृति का परिलक्षण होता है। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय अखंडता के लिए बाधक साम्प्रदायिकता, जातीवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद आदि बाधाओं से पार पाना है। 



भारत के संविधान की प्रस्तावना का महत्व - Importance Preamble of Indian Constitution

  1. प्रस्तावना में उस आधारभूत दर्शन और राजनीतिक, धार्मिक व नैतिक मौलिक मूल्यों का उल्लेख है, जो हमारे संविधान के आधार है। 
  2. इससे संविधान सभा की महान और आदर्श सोच उल्लेखित होती है। इसके अलावा यह संविधान की नींव रखने वालों के सपनों और अभिलाषाओं का परिलक्षण करती है। 


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