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भील जनजाति: इतिहास, निवास क्षेत्र, अर्थव्यवस्था, समाज व संस्कृति | Bhil Tribe in Hindi

भील जनजाति (Bhil Tribe in Hindi) भारत की प्रमुख जनजातियों में से एक हैं। आज के इस लेख में हम Bheel Janjati (Bhil Tribe in Hindi) के बारे में विस्तार से जानेंगे। हम भील जनजाति के निवास क्षेत्र, अर्थव्यवस्था, समाज एवं संस्कृति आदि महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करेंगे। 

Bheel Janjati (Bhil Tribe in Hindi)


Table of Content


'भील' शब्द का अर्थ क्या है? - Bhil Tribe In Hindi

'भील जनजाति' (Bhil Tribe) राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति है। 'भील' शब्द की उत्पत्ति 'बिल' (Bil) से मानी जाती है, बिल शब्द का द्रविड़ भाषा में अर्थ होता है - धनुष। भाषायी दृष्टि से इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत में क्रिया के मूल, जिसका अर्थ है भेदना, वध करना या मारना से हुई है। भील जनजाति के लोग तीरंदाजी में निपुण होते हैं जिस कारण से इन्हें "भारत का बहादुर धनुष पुरुष"भी कहा जाता है।



भील जनजाति का इतिहास संक्षेप में - Bhil Tribe History in Hindi

ऐतिहासिक दृष्टि से भील जनजाति ने दक्षिणी राजस्थान के कई क्षेत्र जैसे की - डगरिया (डूंगरपुर), बासिया (बांसवाड़ा), कोटिया (कोटा), तथा देआवा (उदयपुर) पर शासन किया। इन्हें विश्वसनीय सिपाही और चौकीदार माना जाता है। भीलों को निषाद, व्याध्र, किरात, शबर और पुलिंद भी कहा गया है। अबुल फजल ने भी अपनी पुस्तक आईने-ए-अकबरी में भीलों के बारे में लिखा है कि ये लोग अत्यधिक मेहनती और विधिपालक है।



भील जनजाति का निवास क्षेत्र - Bhil Tribe Habitat in Hindi

भील लोग पर्वत निवासी हैं। ये अरावली, विन्ध्य और सतपुड़ा श्रेणियों के पहाड़ी और पर्वतीय भागों में निवास करने के साथ ही मध्यप्रदेश के धार, झाबुआ, रतलाम व निमाड़ जिलें में तथा राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर व चित्तौड़गढ़ जिलों,  गुजरात के पंचमहल, साबरकांठा, बनासकांठा व बड़ोदरा जिले में निवास करते हैं।


वर्तमान में भील जनजाति गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में एक अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) है। भील जनजाति पाकिस्तान के सिंध प्रांत में भी बसे हुए हैं।


वर्तमान में भील जनजाति की सबसे अधिक जनसंख्या 'मध्यप्रदेश' में निवास करती है।इनका प्रमुख केंद्रीयकरण एकांत क्षेत्रों में पाया जाता है। इनके क्षेत्र में अनाच्छादित पहाड़ियां, अपरदित मिट्टी और वनों की कटाई, भीलों की बढ़ती जनसंख्या के सामने अनेक समस्याएं उत्पन्न कर रही हैं।



निवास क्षेत्र का भौतिक पर्यावरण 

Bhil Janjati के निवास क्षेत्र की जलवायु 'मानसूनी' है, जहां जून के महीने में अधिकतम तापमान 35℃ और मासिक औसत न्यूनतम तापमान 18°C जुलाई के महीने में अंकित किया जाता है। मध्य जून से मध्य सितंबर तक वर्षा ऋतु का समय होता है, इस समय ऋतु में अरब सागर से मानसूनी वर्षा होती है। इनके निवास क्षेत्र के लगभग 30% क्षेत्र में वन पाए जाते है। किन्तु वर्तमान समय में वन क्षेत्र तीव्र गति से संकुचित होते जा रहे है।



भील जनजाति का भोजन 

ज्यादातर भीलों का मुख्य भोजन मक्का है, पर कभी-कभी अकाल के समय छोटे अन्न जैसे कोड़रा (kodra), कूरी (koori) और बाथी (Bathe) का भी उपयोग किया जाता है। उत्सव और प्रीतिभोज के अवसर पर चावल (सोखा) भी खाया जाता है। उचित मूल्य की दुकानों से दिया जाने वाला गेहूं भी अब जनजाति लोगों में काफी लोकप्रिय होता जा रहा है।


मैदानी भागों में निवास करने वाले भील अब गेहूं की खेती भी करने लगे हैं। गेहूं द्वारा बनाये गये भोजन से अतिथियों का स्वागत किया जाता है। छाछ और आटे को उबालकर रावड़ी तैयार की जाती है। ये लोग चना, उड़द और मूंग तथा सब्जी में मसालों का भी उपयोग करते हैं, अन्यथा केवल नमक ही काफी समझा जाता है। रीति- रिवाज और परंपराओं के अनुसार भील मांसाहारी होते हैं। ये लोग खरगोश, हिरण अथवा छोटे पशुओं और पक्षियों जैसे तीतर आदि का मांस तथा भेड़ के मांस का सेवन करते हैं। उत्सवों के अवसरों पर ये मांसाहारी भोजन करते हैं जिसमें भेड़, बकरी, भैंस का मांस शामिल होता है। यदि समस्त समुदाय को निमंत्रित किया जाता है तब भैंसे का मांस पकाया और खिलाया जाता है। 


भील लोग दिन में तीन बार भोजन करते हैं प्रातःकाल में पूर्व रात्रि को बनाया भोजन करते हैं। ग्रामीण भील प्रायः चाय के बड़े शौकीन होते हैं। चाय अत्यधिक कड़ी पीते हैं। जब शक्कर उपलब्ध नहीं होती है तब ये लोग चाय में गुड़ का उपयोग करते हैं।  


राखी, होली और दिवाली के अवसरों पर विशेष भोजन तैयार किया जाता है, इन अवसरों पर परोसी जाने वाली मुख्य वस्तु मीठे चावल होते है‌। कभी-कभी दूध के साथ भी चावल खाया जाता है विवाह के अवसर पर चावल और उबले हुए चने भी परोसे जाते हैं। इन अवसरों पर ये गेहूं के आटे की 'लापसी' बनाते हैं। ये लोग जिस‌ मदिरा का सेवन करते है, वह महुआ वृक्ष के फूलों अथवा बबूल की छाल से तैयार की जाती है। 



भील जनजाति के आवास  

भील जनजातियों की अधिकांश जनसंख्या छितरे हुए ग्रामों में निवास करती है। भीलों की झोपड़ी, उसके द्वारा की गई खेती की भूमि‌ के टुकड़े की मध्य छोटे टीले पर बनाई जाती हैं। प्रत्येक झोपड़ी अपने आप में पूर्ण होती है, जिसमें रहने के लिए कमरों के अतिरिक्त पशुओं को रखने और अन्न भंडारण के लिए भी कुछ कमरे रखे जाते हैं। ये सभी एक ही बाड़े के भीतर होता है। 


अपने घर के निर्माण के लिए ये लोग किसी कारीगर की सहायता नहीं लेते हैं। घर की दीवारें या तो मिट्टी और पत्थर से अथवा बांस से बनाई जाती है। मकान की छत प्रायः मिट्टी की खपरैल से तैयार की जाती है, किंतु कुछ निर्धन भील सरकंडे और पत्तों का उपयोग भी करते हैं। घर का भीतरी भाग साफ-सुथरा रखा जाता है, घर में फर्नीचर के रूप में एक अथवा दो चारपाई होती है, जो बांस की छाल अथवा जूट से बुनकर तैयार की जाती हैं। मिट्टी के बने बर्तन उपयोग में लेते हैं, धातु से बने बर्तन बहुत कम काम में लिए जाते हैं।


झोपड़ी की सामने की दीवारें चूने और लाल गेरू से बनी अपरिष्कृत और पुरातन चित्रकारी से सजाई जाती है। प्रायः इन दीवारों पर धनुष बाण लिए हुए आदमी, चीते और तेंदूए की आकृति बनाई जाती है। वर्तमान में कई संपन्न भील परिवारों ने आधुनिक प्रकार के पक्के मकान भी बना लिए हैं।



भील जनजाति के औजार एवं हथियार 

मुख्य हथियार 

भीलों का सबसे प्रिय शस्त्र धनुष-बाण होता है। धनुष को बांस की मोटी खपच्ची से बनाया जाता है और उसकी डोरी भी बांस की छाल से बनाई जाती हैं। बाण दो प्रकार के होते हैं - हरियो (Hario) और रोबदो (Robdo) 


हरियो बाण, नरसल से बनाया जाता है, जिसके एक सिरे पर कुछ पंख लगे होते हैं तथा दूसरे सिरे पर लोहे का शीर्ष लगा होता है। इसे काले रंग से सजाया जाता है। इस बाण का उपयोग बड़े पशुओं को मारने के लिए किया जाता है। वहीं रोबदो बाण को बांस की लकड़ी से बनाया जाता है जिसके सिर पर बांस का शीर्ष लगा होता है। इस बाण का उपयोग छोटे पक्षियों को मारने तथा बच्चों को धनुर्विद्या सिखाने में किया जाता है।


अन्य हथियार

इन हथियारों के अलावा भील लोग अपने पास तलवार, फटकारा (एक प्रकार का फंदा) और खंजर भी रखते हैं। तलवार का उपयोग पशुओं को मारने और लड़ाई में किया जाता है। खंजर का उपयोग बांस को चीरने और मांस तथा सब्जियों को काटने के लिए किया जाता है। फटकिया का इस्तेमाल पक्षियों को पकड़ने के लिए किया जाता है। आजकल कुछ संपन्न भील बंदूकों का भी उपयोग करते हैं।


सामान्य उपकरण

भीलों के घरों में कुछ सामान्य उपकरण भी मिल जाते हैं जैसे कि बांस अथवा जूट से बनी चारपाई, बांस से बना पालना, मिट्टी और धातु से बने बर्तन, चक्की आदि।



भील जनजाति की अर्थव्यवस्था - Bhil Tribe Economy in Hindi

वनों और पठारी क्षेत्रों के एकांत प्रदेशों में निवास करने के कारण ये लोग मुख्यतः वनों और कृषि भूमि पर निर्भर रहते हैं। वनों से फल, पत्तियां, कंदमूल आदि एकत्रित करते हैं तथा अपने भरण-पोषण के लिए जंगली पशुओं और पक्षियों का शिकार करते हैं।


ये लोग अपने परिवार के लिए खाद्यान्न, साग-सब्जियां और चारे की फसलें भी उत्पन्न करते हैं। इनके द्वारा की जाने वाली कृषि भरण-पोषण प्रकार की होती है, यह आदिम और देसी तकनीकों से की जाती है इस कारण प्रति इकाई क्षेत्र उपज कम है तथा ग्रीष्मकालीन मानसून की विफलता से भील अर्थव्यवस्था अधिक विकट बन जाती है।


यदि भीलों को अपनी आजीविका के लिए वनों से पर्याप्त वस्तु नहीं मिलती थी, तो वह चोरी और लूटपाट के साधन अपना लेते थे। किंतु अब भील लोग बाजार-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हो रहे हैं। वर्तमान में भील लोग व्यापारिक फसलें भी उत्पन्न करने लग गए हैं। 


बाजार-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर प्रेरित होने से यह जनजाति एक वर्ष में तीन फसलें उत्पन्न करने लगी हैं। वर्तमान समय में भील अर्थव्यवस्था विविध रूपी हो गई है भीलों के पास कृषि भूमि दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। इसके परिणामस्वरूप भीलों का तहसील और जिला मुख्यालयों की ओर प्रवसन होने लगा है।


भील अर्थव्यवस्था में कृषि से विविधताओं की ओर नवीन झुकाव दिखाई देने लगा है। ये लोग प्रदेश की प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था में निरंतर सम्मिलित हो रहे हैं। अनेक भील संपन्न और विशिष्ट वर्ग के हैं, कुछ मध्यम वर्ग के हैं तथा सबसे नीचे के स्तर पर निर्धनता, निरक्षरता और पिछड़ेपन से दबे हुए भील भी है। निचले स्तर के भीलों का समूह सबसे बड़ा है।



भील जनजाति की वेशभूषा 

कुछ समय पूर्व तक भीलों के वस्त्र बहुत कम होते थे। पुरुष का एकमात्र वस्त्र वृक्ष छाल से बना नेकर होता था और स्त्री का पेटीकोट भी वृक्ष की छाल से बना होता था। स्त्रियां धातु से बने कई प्रकार के आभूषण हाथ और पैरों में पहनती थी। किंतु पिछले तीन-चार दशकों में भील स्त्रियों व पुरुषों के वस्त्रों में बहुत अधिक परिवर्तन आया है।


एक भील पुरुष सामान्यतः अपने सिर को साफे (फेंटा) से ढकते है किंतु नई पीढ़ी के लोग किसी भी प्रकार का साफा नहीं बांधते हैं। वर्तमान में भील पुरुष अपने शरीर को खादी से बनी कमीज से ढकते हैं वहीं युवा लोग अब कृत्रिम वस्त्रों से बनी टी-शर्ट, शर्ट और सूट पहने लग गए हैं। अभी भी कई लोग जो अपनी पुरानी परंपराओं से जुड़े हुए हैं वे अपने कंधे पर एक शाॉल या कपड़ा रखते हैं।


एक भील स्त्री की पोशाक में एक पेटीकोट (घाघरा), कांचली और एक साड़ी होती है। प्रथा के अनुसार अविवाहित लड़कियों को साड़ी पहनने की आज्ञा नहीं होती है। अविवाहित लड़कियों की पोशाक में घाघरी होती है जो कि 3 से 4 मीटर लंबे वस्त्र से तैयार की जाती है। लड़कियां अपने सिर को एक कपड़े से ढकती है जिसे 'ओढ़नी' कहा जाता है।


भील लोग चांदी, पीतल, जस्ता और निकल से बने आभूषण पहनते हैं। सामान्यतः भील स्त्रियां लाख और कांच की चूड़ियां बनती है। स्त्रियों के अन्य आभूषण में हंसली और मुर्की होते हैं। स्त्री और पुरुष दोनों ही जूते पहनते हैं।



भील जनजाति का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन - Bhil Tribe Social Life, Culture, Traditions in Hindi

भील, अनेक पितृसत्तात्मक बहिर्विवाही समूहों और कुलों में संगठित है। प्रत्येक कुल को स्पष्ट रूप से एक नाम दिया जाता है और एक ही पूर्वज से संबंधित वंशज समग्र रूप में सम्मिलित किए जाते हैं। भील जाति में उनके कुलों के नाम प्राय: पौधों और पशुओं के नाम पर रखे गए हैं, जिससे वे अपनी उत्पत्ति बताते हैं। 


इस प्रकार, भील जनजाति अनेक कुलों में विभाजित है तथा प्रत्येक कुल एक ही वंश पर आधारित होता है तथा प्रत्येक कुल के सदस्य अलग-अलग गांव (पाल) में निवास करते हैं और नियमों का पालन करते हैं। कुल नाम यह स्पष्ट करता है कि उस नाम के सभी लोग सपिण्ड सबंधित है और इसके अतिरिक्त बहिर्विवाही वैवाहिक, अनुबंध करते समय कुल-नाम द्वारा बहिर्विवाही नियम का पालन करवाया जाता है।


प्रत्येक कुल का अपना गणचिह्र (Totem) होता है। यह गणचिह्र कोई पौधा, वृक्ष अथवा पशु हो सकता है। कुल के सभी सदस्य कठिनाई और उत्सवों के समय अपने गणचिह्र देवी-देवताओं का आवाहन करते हैं।


भील जनजाति में विवाह

  • Bhil Janjati में विवाह एक संस्कार नहीं है बल्कि भील स्त्री व पुरुष दोनों के लिए वयस्कता और परिपक्वता का एक चिन्ह है। भील समाज में जो व्यक्ति विवाह नहीं करता है उसे हीन दृष्टि से देखा जाता है।
  • भीलो में विधवा विवाह तथा बहुविवाह का भी प्रचलन है।
  • इस जाति में 'वधू मूल्य' काफी अधिक बढ़ गया है जिस कारण कई बार भील स्त्रियों को भगाकर भी विवाह किया जाता हैं।


धर्म 

  • भील लोग आम, केला, पीपल, बरगद आदि वृक्षों की पूजा करते हैं।
  • ये लोग पीपल के वृक्ष को सबसे अधिक पवित्र वृक्ष मानते हैं  जिसके साथ कोई निषेध जुड़े रहते हैं। इस ‌‍वृक्ष की पत्तियों और टहनियों को काटना वर्जित माना जाता है।
  • यह लोग नदी के तट पर उगने वाली घास की भी पूजा करते हैं।
  • भील लोग कृषि-यंत्रों की भी पूजा करते हैं।
  • ये लोग गाय के गोबर की भी पूजा करते है।


साक्षरता और शिक्षा

  • वर्तमान में काफी अधिक भील आज भी अशिक्षित हैं।
  • भील जाति में व्यापक रूप में साक्षरता का स्तर बढ़ रहा है। आज शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर भील युवक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
  • भील लड़कियां भी यघपि उनकी संख्या बहुत कम है, शिक्षा ग्रहण कर रही है।
  • भीलों का शिक्षा के प्रति रुझान आरंभ हो चुका है और भविष्य में भी लोग को साक्षरता की उच्च शिक्षा (तकनीकी और व्यवसाय की दोनों ही) लोकप्रिय हो जाएगी।

भील जनजाति के त्यौहार

  • भीलों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार होली है। यह त्यौहार हिंदू त्यौहार से लिए हुआ नहीं है, वरन होली देवी जिसे 'जोगन माता' भी कहा जाता है, कि भील पृष्ठभूमि में यह त्यौहार मनाया जाता है।
  • दीपावली इनका दूसरा महत्वपूर्ण पर्व है। इस त्यौहार पर भील लोग नदी तथा अन्य पवित्र जल स्रोतों की पूजा करते हैं। 
  • दीपावली के अवसर पर नयनाभिराम नृत्य होते है, जिसमें कभी-कभी पुरुष, स्त्रियों के वेश में नृत्य करते हैं।
  •  कुछ विशिष्ट अवसरों जैसे कि विवाह, मृत्यु तथा दैनिक जीवन के महत्वपूर्ण अवसरों के लिए विशेष नृत्य होते हैं।


धर्मानुष्ठान

  • भील बच्चों का जीवन अनेक कर्मकांडों से प्रभावित रहता है। 
  • दूध पीने की रस्म बालक के जन्म के 2 दिन बाद बच्चे को किसी बूढ़ी स्त्री की सहायता से बच्चे की मां द्वारा स्तनपान कराया जाता है। 
  • बालक के जन्म पर हमेशा यह जानने के लिए कि इस बालक में किस संबंधी ने पुनर्जन्म लिया है, उसके शरीर पर किसी विशेष चिह्न की खोज की जाती है। बालक का नाम उसके पिता दादा के नाम पर नहीं रखा जाता हैं।
  • भील लोग श्मशान में मृत देह का सिर उत्तर दिशा में रखते हैं।
  • मृत्यु के तीसरे दिन गांव वाले एकत्रित होते हैं जहां मृत व्यक्ति के निकट संबंधियों के सिर के बाल और दाढ़ी के बाल काटे जाते हैं।
  •  बारहवें दिन मदिरापान और आमोद- प्रमोद होता है और पेड़ों पर तीर चलाए जाते हैं।
  • एक वर्ष तक घर में पकने वाले भोजन में से दो बार मृत व्यक्ति को भोजन और जल अर्पित किया जाता है।
  • भील अपने मृत पूर्वजों की याद में स्मारक शिला लगाते हैं, यह शिला स्मारक या तो सामान्य होते हैं या फिर सजावट वाला होते हैं, जिसमें पूर्वजों को उसकी वीरोचित मुद्रा में दर्शाया जाता है, सामान्यतः उसके सामाजिक स्तर पर निर्भर करता है।



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