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यूरोपीय पुनर्जागरण: क्या है?, कारण, विशेषताएँ और प्रभाव | Punarjagran Kya Hai?

इतिहास के इस लेख में आज हम बात करेंगे 'यूरोप के पुनर्जागरणकाल' (Punarjagran Kya Hai?) के बारे में। इस लेख में आपको पुनर्जागरण से सम्बंधित सभी प्रश्नों जैसे की Punarjagran Kya Hai?, पुनर्जागरण का अर्थ, पुनर्जागरण के कारण, पुनर्जागरण की विशेषताएं और पुनर्जागरण के प्रभाव आदि सभी के उत्तर मिल जायेंगे। 

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Table of Content

  


पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि - Background of Renaissance in Hindi

प्राचीन यूरोप रोम और यूनान की समृद्ध संस्कृति का काल था किन्तु मध्यकाल में यह समृद्ध संस्कृति विलुप्त हो गयी और सर्वत्र निराशा और उत्साहहीनता व्याप्त हो गई। मध्यकाल में यूरोप के रूढ़िवादी चर्च ने मनुष्य के मस्तिष्क को अपने रूढ़िवादी विचारों से भर दिया जिस कारण यूरोप की प्रगति रुक गयी। एक ओर जहाँ यूरोप के रूढ़िवादी चर्च ने लोगों के मस्तिष्क को रूढ़िवादिता से भर दिया वहीं दूसरी और सामंतवाद ने पुरे यूरोप को आर्थिक रूप से अपंग कर दिया। यूरोप की अर्थव्यवस्था एक क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था बनी रह गयी। 


लेकिन उत्तर मध्यकाल में यूरोप में कुछ ऐसी प्रवर्तियाँ उभरने लगी जिन्होंने धीरे-धीरे लोगों की मनोदशा में चेतना का उदय किया। इस समय लोगों ने रूढ़िवादिता से हटकर तर्क, परलोक से हटकर इहलोक को महत्व देना शुरू किया और इसी के साथ यूरोप धीरे-धीरे आधुनिकता की ओर बढ़ने लगा। 


पुनर्जागरण पढ़ते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है की यह कोई आकस्मिक घटित घटना नहीं थी बल्कि पिछली कई शताब्दियों से घट रही घटनाओं का परिणाम थी। आधुनिक यूरोप का आरंभ पुनर्जागरण से ही माना जाता है क्योंकि पुनर्जागरण ने यूरोप में विचार की स्वतंत्रता, वैज्ञानिक एवं आलोचनात्मक दृष्टि, चर्च के प्रभुत्व से कला एवं साहित्य की मुक्ति तथा प्रादेशिक भाषाओं के विकास को संभव बनाया।



पुनर्जागरण का अर्थ - Punarjagran Kya Hai?  

'पुनर्जागरण' (Renaissance) शब्द जिसका का शाब्दिक अर्थ है - 'फिर से जागना' यह फ्रेंच भाषा के 'रेनेसाँ' शब्द से बना है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग इटली के "वैसारी" नाम के व्यक्ति ने 16वीं सदी में स्थापत्य एवं मूर्तिकला में आये क्रान्तिकारी परिवर्तनों के लिए किया था। 


13वीं से 16वीं सदी के मध्य कुछ ऐसी विशिष्ट परिस्थितियां उत्पन्न हुई जिन्होंने मनुष्य को चेतनायुक्त बनाया, यही चेतना पुनर्जागरण कहलाती है। 


पुनर्जागरण एक ऐसा बौद्धिक एवं उदार सांस्कृतिक आंदोलन था, जिसमें प्राचीन यूरोप की प्रेरणा के आधार पर नये यूरोप का निर्माण हो रहा था। इस युग में पुन: उन आदर्शों तथा मूल्यों को महत्व दिया जाने लगा, जो मध्यकाल में नगण्य समझे जाते थे, जैसे - लौकिक जगत् के प्रति आस्था, मानववाद का विकास, रूढ़िवादिता के स्थान पर तर्क की महत्ता, प्राकृतिक सौंदर्य की अनुभूति आदि। 



पुनर्जागरण काल 

पुनर्जागरण काल 1350 ईसवी से 1550 ईसवी के मध्य माना जाता है। पुनर्जागरण का काल एक संक्रमणकाल था क्योंकि इसमें एक और यूरोप का मध्यकाल था तो दूसरी ओर आधुनिक काल तथा यूरोप मध्यकाल को छोड़ आधुनिक काल में प्रवेश कर रहा था।


पुनर्जागरण की शुरुआत

यूरोप में पुनर्जागरण की शुरुआत इटली से मानी जाती हैं। विद्वानों द्वारा इटली से पुनर्जागरण की शुरुआत होने के कई कारण माने जाते है जो की निम्नलिखित हैं -


A. उदारवादी समाज 

पुनर्जागरण की सर्वप्रथम अभिव्यक्ति इटली में होने का एक प्रमुख कारण यह माना जाता है कि यूरोप के अन्य देशों की तुलना में यहाँ सामाजिक वर्गों का विकास कुछ भिन्न रूप में हुआ। मध्यकाल के आरंभ से प्रायद्वीप के एक बहुत बड़े भाग में नागरिकों तथा योद्धा वर्ग जिसने राजनीतिक, सैनिक तथा सांस्कृतिक नेतृत्व पर एकाधिकार कर रखा था के बीच सामंती जीवन देखने में नहीं आया था। 

प्रभावशाली भू-स्वामियों को अपदस्थ करके समीप के नगरों में जाने के लिए विवश किया गया। इन नगरों का साहसिक व्यापारियों के संरक्षण में विस्तार हो रहा था। उदारवादी एवं स्वतंत्र विचारों की पृष्ठभूमि में पुनर्जागरण का बीजारोपण मुश्किल नहीं रहा।


B. आर्थिक समृद्धि

इटली एक समृद्ध देश था। समृद्धि का कारण था - विदेशी व्यापार। भूमध्यसागरीय देशों में सबसे अनुकूल स्थिति इटली की ही थी, जिससे मध्यकाल के अरब व्यापारियों द्वारा एशियाई देशों से लाया गया सामान अधिकांशतः इटली में ही बिकता था। यहीं से एशियाई वस्तुएं अन्य यूरोपीय देशों में जाती थी। इसके अलावा उत्तरी यूरोप में आने वाले व्यापारी भी इटली होकर पश्चिम एशिया जाते थे। इस प्रकार इटली एक सुप्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। इसके बढ़ते व्यापार एवं समृद्धि ने इटली में पुनर्जागरण की प्रवृत्तियों को सशक्त आधार प्रदान किया।


व्यापारिक गतिविधियों के कारण विभिन्न देशों के साथ इटली के व्यापारिक नगरों का संपर्क बना हुआ था। संपर्क और विचार-विनिमय ने दूसरे के विचारों को ग्रहण करने की क्षमता को विकसित किया। नगरों ने एक अन्य तरह से भी पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि बनाई। यह एक स्थापित तथ्य है कि बड़े एवं विकसित नगरों में ही संग्रहालयों, सार्वजनिक पुस्तकालयों और नाटक शालाओं, जो सांस्कृतिक जीवन के अंग है, की स्थापना संभव है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार की संस्थाओं को रखने के लिए क्षमता नहीं होती है।


C. मध्यम वर्ग का उदय

इटली की समृद्धि से व्यापारिक मध्यम वर्ग का उदय हुआ। वहां का व्यापारिक वर्ग इतना प्रभावशाली हो गया कि उसने सामंतो एवं पोप की परवाह करना बंद कर दिया। इससे इटली में पुनर्जागरण की भावना को बल मिला।

इतालवी व्यापारियों के संरक्षण में साहित्यकारों एवं कलाकारों को स्वतंत्र रूप से खुलकर अपनी रुचि की कृतियां बनाने का अवसर मिला। इटली में अकेले फ्लोरेंस नगर ने ही सर्वाधिक कलाकारों और साहित्यकारों को प्रश्रय दिया। पुनर्जागरण काल में उत्पन्न विद्वानों एवं कलाकारों के योगदान का श्रेय उनके अतिरिक्त उस समृद्धि को जाता है, जिसे इटली ने विदेशी व्यापार के द्वारा अर्जित किया था।


D. रोमन सभ्यता की जन्मस्थली 

इटली में पुनर्जागरण का एक कारण यह भी था कि यह प्राचीन रोमन सभ्यता का जन्म स्थल रहा था। प्राचीन रोमन संस्कृति पुनर्जागरण के लिए प्रेरणा का केंद्र रही।


E. शिक्षा व्यवस्था में बदलाव 

इटली में व्यापार के विकास के साथ एक नई प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता हुई, जिसमें व्यावसायिक ज्ञान, भौगोलिक ज्ञान आदि को समुचित स्थान मिला।



पुनर्जागरण के प्रमुख कारण 

पुनर्जागरण के निम्नलिखित प्रमुख कारण रहे थे -

धर्मयुद्ध (क्रूसेड) 

11वीं शताब्दी के अंतिम दशक से 13 शताब्दी के अंत तक यूरोप में लड़े गए युद्ध, जो ईसाई धर्म के पवित्र तीर्थ स्थल जेरूशलम को लेकर मुसलमानों (सैल्जुक तुर्कों) के बीच हुए, इन युद्धों को धर्मयुद्ध (क्रूसेड) की संज्ञा दी गई। इन युद्धों के कारण यूरोप के लोग अरब तथा एशिया की समृद्ध संस्कृति के संपर्क में आये और उनमें अपनी संस्कृति को भी समृद्ध बनाने की भावना जाग्रत हुई।  


व्यापारिक समृद्धि 

पुनर्जागरण का एक सबसे बड़ा कारण व्यापार का विस्तार था। क्रूसेड के बाद यूरोप के पूर्वी देशों के साथ व्यापार संबंध स्थापित हुए। यूरोप के व्यापारी अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए जेरूशलम, एशिया माइनर होते हुए पूर्वी देशों की ओर जाने लगे। चर्च प्रतिबंधित जलमार्गों का उपयोग किया जाने लगा, जिससे व्यापार में काफी वृद्धि हुई। इस कारण से नए शहरों का उदय हुआ और उनका महत्व बढ़ने लगा। 

यूरोप के ये नगर अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक केंद्र बनने लगे, जिससे यहां से निरंतर विभिन्न देशों के व्यापारियों एवं यात्रियों का आना-जाना बना रहा। इसके कारण विचारों का आदान-प्रदान हुआ और ज्ञान के विकास में सहायता मिली। इन नगरों के स्वतंत्र वातावरण ने स्वतंत्रता को प्रोत्साहन दिया तथा अब लोग चर्च और चर्च से संबंधित संस्थाओं को संदेह की दृष्टि से देखने लगे।


कागज और मुद्रण यंत्र

मध्ययुग में अरबों के माध्यम से युरोपवासियों ने कागज बनाने की कला सीखी। 15 वीं शताब्दी से पूर्व कागज पर छपाई मुश्किल एवं महंगी थी किंतु इसके बाद ऐसा नहीं रहा। 15वीं शताब्दी के मध्य में जर्मनी के 'जोहनेस गुटेनबर्ग' नामक व्यक्ति ने एक टाइप मशीन का आविष्कार किया। इस मुद्रण यंत्र के आविष्कार ने बौद्धिक विकास का मार्ग खोल दिया। 


ज्ञान पर विशिष्ट लोगों का एकाधिकार समाप्त हो गया। 'पुस्तकों में ऐसा लिखा है' कहकर अब जनता को गुमराह नहीं किया जा सकता था क्योंकि जनता अब स्वयं आवश्यकता पड़ने पर ग्रंथ पढ़ सकती थी, उनमें क्या लिखा है? पुस्तकों द्वारा ज्ञान के प्रसार से अंधविश्वास तथा रूढ़ियां कमजोर पड़ने लगी, जिससे लोगों में आत्मविश्वास जागृत हुआ। 


छापेखाने के आविष्कार ने समाज के प्रत्येक व्यक्ति की बौद्धिक क्षुधा को शांत करने का मार्ग प्रशस्त किया। अब महत्वपूर्ण साहित्य सस्ते दामों पर मिलना संभव हो सका। लोगों में साक्षरता की इच्छा के साथ-साथ सांस्कृतिक जागरण को बल मिला। छापेखाने के आविष्कार के कारण ही दबे हुए लोगों को अपने अधिकारों का ज्ञान प्राप्त हुआ। लेखन-कला के पश्चात मुद्रण-कला को ही इतिहास का सबसे बड़ा आविष्कार माना जाता है, जिसने बौद्धिक चेतना का सर्वाधिक विकास किया।


कुस्तुनतुनिया पर तुर्को का अधिकार 

1453 ईस्वी में तुर्को ने पूर्वी रोमन साम्राज्य (बाइजेन्टाइन) की राजधानी कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया। इससे पूर्वी रोमन साम्राज्य का सदैव के लिए पतन हो गया किंतु इसके फलस्वरूप पश्चिमी यूरोप में जो ज्ञानोदय हुआ, उसके प्रभाव एवं प्रसार ने नवयुग के आगमन की सूचना दी। तुर्कों के कुस्तुनतुनिया पर अधिकार, उनके अत्याचारों और पूर्वी रोमन साम्राज्य के अवशेषों को खत्म कर देने से कई महत्वपूर्ण परिणाम सामने आए जो निम्नलिखित हैं -


  • कुस्तुनतुनिया पर तुर्को का अधिकार हो जाने से यूरोप से पूर्वी देशों को जाने वाले स्थल मार्ग पर अब तुर्कों का अधिकार हो गया और यूरोप का व्यापार अब पूर्वी देशों के साथ बंद हो गया।


  • यूरोप में पूर्वी देशों की विलासिता की सामग्री तथा गर्म मसालों की जबरदस्त मांग थी। अत: दक्षिण-पश्चिम यूरोप के लोग किसी नए व्यापार-मार्ग, संभवतः जलमार्ग खोज निकालने के लिए व्यग्र हो उठे। इस व्यग्रता ने ही अमेरिका की खोज की, भारत एवं पूर्वी द्वीपों का जलमार्ग ढूंढ निकाला।

  • कुस्तुनतुनिया पिछले 200 वर्षों से ज्ञान, दर्शन तथा कला का महान केंद्र था। इस्लाम में नव-दीक्षित तथा बर्बर तुर्कों लिए इनकी न कोई उपयोगिता थी और न महत्व। यहां से आजीविका की खोज में हजारों यूनानी विद्वान, दार्शनिक एवं कलाकार इटली, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड आदि देशों में चले गए। वे जाते समय रोम एवं यूनान का ज्ञान-विज्ञान तथा नई चिंतन पद्धति अपने साथ ले गए।


मंगोल साम्राज्य का उदय 

13वीं शताब्दी में प्रसिद्ध मध्य-एशिया विजेता चंगेज खान की मृत्यु के बाद कुबलाई खां ने विशाल एवं शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की थी। इसमें रूस, पोलैंड, हंगरी आदि प्रदेश शामिल थे। उसका दरबार विद्वानों, धर्म प्रचारकों और व्यापारी का केंद्र था। मंगोल राजसभा पोप के दूतों, भारत के बौद्ध भिक्षुओं, पेरिस, इटली तथा चीन के दस्तकारों भारत के गणितज्ञों ज्योतिषाचार्यों आदि से सुशोभित थी। 


इस अवधि में पिंकिग (केम्बुल) तथा समरकंद अंतरराष्ट्रीय केंद्र बन गए थे। अत: इस युग में पूर्व एवं पश्चिम का वास्तविक संपर्क स्थापित हुआ। सम्पर्क, विचार-विनिमय और ज्ञान के आदान-प्रदान का यूरोप के लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा। मंगोलों के संपर्क से यूरोप को कागज व मुद्रण तथा बारूद की सर्वप्रथम जानकारी मिली। 


मानवतावाद का विकास 

पुनर्जागरण का एक अन्य मुख्य कारण मानवतावाद माना जाता है। मध्यकाल में मानवतावादी लेखकों की चर्च के स्थान पर जीते जागते मनुष्य और उनकी खुशियों व गमों में दिलचस्पी थी। मानवतावादियों की समझ में जीवन का लक्ष्य सर्वोपरि ईश्वर की सेवा करने के लिए काम करना था। अब लोगों के चिंतन का केंद्र बिंदु मनुष्य ‌‌‌‌‌बन गया था। तथा मानवतावादियों ने जनता को सुसंस्कृत बनाने के लिए प्राचीन रोमन और यूनानी साहित्य पर जोर दिया।



पुनर्जागरण की विशेषताएं

पुनर्जागरण की निम्नलिखित विषेशताएँ थी -

तर्क पर बल 

पुनर्जागरण ने मध्ययुगीन धर्म और परंपराओं से नियंत्रित चिंतन को मुक्त कर तर्क को बढ़ावा दिया। इस युग के प्रारंभ में अरस्तु के तर्कशास्त्र का गहरा प्रभाव पड़ा।


प्रयोग पर बल

इस काल में विचारों की पुष्टि के लिए प्रयोग का महत्व बढ़ा। प्रयोग के आधार पर ही तो गैलीलियो ने कोपर्निकस के सिद्धांत को अकाटय साबित कर दिया।


मानववाद का समर्थन 

पुनर्जागरण की एक प्रमुख विशेषता मानववाद थी। मानववाद का अर्थ है - मानव जीवन में रुचि लेना, मानव की समस्याओं का अध्ययन करना, मानव का आदर करना, मानव जीवन के महत्व को स्वीकार करना तथा उसके जीवन को सुधारने और समृद्ध एवं उन्नत बनाने का प्रयास करना। पुनर्जागरण युग में परलोक की अपेक्षा लौकिक रूचि को महत्व देने की विचारधारा को ही मानववाद कहा गया है।



पुनर्जागरण का महत्व/परिणाम

1. भौतिकवादी दृष्टिकोण का विकास

पुनर्जागरण ने मनुष्य को उसकी महत्ता से अवगत कराया। यह कहा जा सकता है कि पुनर्जागरण मूलतः मध्यकाल के ईश्वर केन्द्रित सभ्यता से आधुनिक युग के मानव केन्द्रित सभ्यता की ओर एक परिवर्तन था।


2. बुद्धिवादी दृष्टिकोण का विकास

पुनर्जागरण ने तर्क और विवेक को प्रस्थापित किया तथा पुरानी धार्मिक विचारधारा तथा परंपराओं को झकझोर कर उन पर कठोर आघात किया। विचार स्वातंत्र्य को पुनर्जागरण का आधार स्तंभ माना जाता है।


3. अभिव्यक्ति की भावना का विकास 

पुनर्जागरण ने अभिव्यक्ति की भावना का विकास किया। इसका अर्थ यह भी है कि अब केवल लोगों को न तो नि:स्तब्ध भाव से बातों को सुनते ही जाना हैं और न ही सम्राट या पोप का उन्हें यह आदेश देना है कि आप अमुक कार्य को अमुक पद्धति से करें अथवा अमुक प्रकार से सोचे। वे लोग जीवन के रंगमंच पर आकर स्वयं कोई न कोई अभिनय करना और व्यक्तिगत तौर पर अपने अपने विचारों को किसी ने किसी भांति 'अभिव्यक्त' करना चाहते थे।


4. पुरातन के प्रति मोह जागृत करना 

पुनर्जागरण से पूर्व लोगों को पुरातन ज्ञान में कोई अभिरुचि नहीं थी। इटलीवासी अपने प्राचीन स्मारकों को विस्मृत कर चुके थे। परंतु इस आंदोलन ने उनका ध्यान इन स्मारकों की ओर आकृष्ट किया। जिससे आगे चलकर प्राचीन विश्व सभ्यता के अनेक अज्ञात ऐतिहासिक तथ्यों से आवरण हट सका।


5. राज्य एवं धर्म का पृथक्करण एवं राष्ट्रीयता का विकास

पुनर्जागरण के बाद न केवल कैथोलिक चर्च का एकाधिकार टूटा और सरल सम्प्रदायों का जन्म हुआ बल्कि निकट भविष्य में राज्य और धर्म के बीच एक स्पष्ट विभाजन रेखाकित हुई। धर्म और पोप की सत्ता के प्रभाव में कमी आने से लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। राष्ट्रीयता की भावना ने लोगों में अपने अपने राष्ट्र की प्रगति और शक्ति के विकास में रुचि बढ़ायी।


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