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औद्योगिक क्रांति क्या है?: पृष्ठभूमि, कारण और परिणाम | Audyogik Kranti Kya Hai

Hello दोस्तों, इतिहास के इस लेख में आज हम बात करेंगे विश्व इतिहास एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना "औद्योगिक क्रांति" (Industrial Revolution in Hindi) के बारे में। औद्योगिक क्रांति का विषय कई परीक्षाओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं इसलिए इस लेख में इसके बारे में पुरे विस्तार से बताया गया है। इस लेख को पढ़ने के बाद आपके औद्योगिक क्रांति से सम्बंधित सभी प्रश्नों जैसे की Audyogik Kranti Kya Hai?Audyogik Kranti के कारण, औद्योगिक क्रांति क्यों और कैसे शुरू हुई? और इस क्रांति से यूरोप में क्या परिवर्तन हुए? आदि के उत्तर मिल जायेंगे। 

Audyogik Kranti Kya Hai

Table of Content


 

औद्योगिक क्रांति की पृष्ठभूमि - Audyogik Kranti

जैसा की हम जानते हैं की यूरोप में 14वीं से 16वीं सदी के मध्य का काल पुनर्जागरण, प्रबोधन तथा धर्मसुधार आंदोलनों का काल रहा हैं। इन आंदोलनों से यूरोप में बौद्धिक चिंतन को गति मिली और इसके परिणामस्वरूप वाणिज्य और औद्योगिक क्षेत्र में बहुत अधिक परिवर्तन हुए और एक अभूतपूर्व क्रांति हुई जो ब्रिटेन से शुरू होकर पूरे यूरोप में फ़ैल गई। 


औद्योगिक क्रांति किसी नियोजित नीति का परिणाम नहीं थी बल्कि यह तो कुछ विशेष परिस्थितियों की देन थी। व्यापारिक क्रांति के कारण जब यूरोप के व्यापार में तीव्र वृद्धि हुई तो इससे मांग में वृद्धि हुई और इसकी पूर्ति करने के लिए उत्पादन में वृद्धि करना आवश्यक था और इसी कारण मशीनों का अविष्कार तथा प्रयोग तीव्र गति से हुआ। औद्योगिक क्रांति ने पूरे यूरोप की दशा ही परिवर्तित कर दी, वह यूरोप जिसके मध्यकाल को अंधकार का काल कहा जाता है उसने अब तीव्र प्रगति करते हुए आधुनिक युग में प्रवेश करना शुरू कर दिया। 



Audyogik Kranti Kya Hai? - Industrial Revolution in Hindi

'औद्योगिक क्रांति' शब्द का प्रयोग फ़्रांस के विद्वान 'जार्जिस मिशले' और जर्मनी के 'काइड्रिक एंजेनम' द्वारा किया गया। अंग्रेजी में  इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम दार्शनिक और अर्थशास्त्री 'अरनॉल्ड टॉयनबी' द्वारा उन परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए किया गया जो ब्रिटेन के औधोगिक विकास में 1760 ई.-1820 ई. के बीच हुए थे। 


इतिहासकार G.W.साउथगेट के शब्दों में, "औद्योगिक क्रांति औद्योगिक प्रणाली में परिवर्तन थी, जिसमें हस्तशिल्प के स्थान पर शक्ति संचालित यंत्रों से काम लिया जाने लगा तथा औद्योगिक संगठन में भी परिवर्तन हुआ। घरों में उद्योग चलाने की अपेक्षा कारखानों में काम होने लगा"। 


आधुनिक मशीनों द्वारा बड़े स्तर पर निर्माण कार्य करने की प्रक्रिया को औद्योगिक क्रांति के नाम से जाना गया। इस प्रक्रिया में छोटे-छोटे स्तर पर होने वाले निर्माण कार्य बड़े स्तर पर आधुनिक मशीनों द्वारा किया जाने लगे। औद्योगिक क्रांति के अंतर्गत निम्नलिखित परिवर्तन हुए -

  1. उत्पादन सम्बन्धी अनेक कार्य, जो पहले हाथों से किये जाते थे, अब वाष्प चलित यंत्रों से किये जाने लगे। 
  2. यंत्रों और मशीनों को चलाने के लिए जल-शक्ति के स्थान पर वाष्प-शक्ति और आगे चलकर विद्युत का उपयोग होने लगा। 
  3. इस्पात के कारखाने खोले गए। 
  4. कृषि कार्य मशीनों से किया जाने लगा। 
  5. पूँजी का उपयोग बढ़ा। 
  6. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुई। 
  7. वाष्पचलित रेल इंजन और जहाजों का निर्माण हुआ। 



औद्योगिक क्रांति का प्रारम्भ - Audyogik Kranti Ki Shuruaat

औद्योगिक क्रांति की शुरुआत 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में सर्वप्रथम इंग्लैंड में हु। हॉलैंड, यूरोपीय देशों में एक ऐसा देश था, जहां औद्योगिक क्रांति के लिए आवश्यक परिस्थितियां विद्यमान थी। हॉलैंड के पास पूंजी भी थी परन्तु वह औद्योगिक देश न होकर व्यापारी देश था। हॉलैंड में लोहे और कोयले का अभाव रहा। इसके अतिरिक्त 18 वीं सदी के पूर्व ही वह यूरोपीय युद्धों में उलझ कर फ्रांस की विस्तारवादी नीति का शिकार हुआ। 

औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात इंग्लैंड से होने के निम्नलिखित कारण थे -

  • लोहे एवं कोयले की खानें पास-पास होना।
  • इंग्लैंड का विस्तृत औपनिवेशिक साम्राज्य
  • मांग के अनुरूप उत्पादन
  • इंग्लैंड का मुक्त समाज
  • अर्द्धकुशल कारीगरों की उपलब्धता
  • फ्रांसीसी क्रांति एवं युद्ध
  • इंग्लैंड में शांति एवं व्यवस्था
  • पूंजी की उपलब्धता
  • व्यापारी वर्ग का प्रभावी होना
  • काली मृत्यु 
  • बैंकिंग 
  • इंग्लैंड के अनुकूल भौगोलिक स्थिति
  • कृषि क्रांति
  • वैज्ञानिक आविष्कारों को प्रोत्साहन



औद्योगिक क्रांति की वैज्ञानिक एवं तकनीकी पृष्ठभूमि 

मध्ययुगीन स्थिर सामंती समाज के संकीर्ण विचारों ने यूरोप में विज्ञान के क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण विकास नहीं होने दिया किंतु कृषि योग्य भूमि के विस्तार और उसके बेहतर उपयोग करने तथा कामगारों की कमी के कारण कई तकनीकी आविष्कार हुए।


मध्य युग में कामगारों की भारी कमी के कारण पशुओं, हवा और पानी की शक्ति का प्रयोग शुरू हुआ। उत्तर मध्ययुग में बड़े तकनीकी सुधार होने से कृषि व अन्य वस्तुओं का बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा। अतिरिक्त उत्पादन ने आगे उत्पादनों को और बढ़ावा दिया। धीरे-धीरे किसानों से बलपूर्वक काम लेने पर आधारित वंशानुगत सामंती व्यवस्था का स्थान व्यापारिक समाज ने ले लिया, जिससे उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन एवं मुद्रा द्वारा भुगतान प्रमुख हो गया। इससे व्यापार के तीव्र विस्तार को बढ़ावा मिला, जिसमें जहाजरानी व नौ-संचालन में सुधारों से और अधिक वृद्धि हुई।


व्यापार के विश्वव्यापी विस्तार ने व्यापारी वर्ग को ताकतवर बना दिया। कालांतर में व्यापारी वर्ग सामंतों और जमीदारों को सत्ता से हटाने में सफल हो गया।। 17वीं सदी नए पूंजीवादी तरीकों के उत्पादन की आगे उन्नति के लिए तैयारी हो चुकी थी। उत्पादन, व्यापार और व्यवसाय पर सांमती और शाही प्रतिबंध हट चुके थे। बुर्जुआ वर्ग (मध्यवर्ग) को बड़े राजनीतिक, धार्मिक और बौद्धिक संघर्ष के बाद ही पूंजीवादी अर्थव्यवस्था विकसित करने में प्रारंभिक विजय मिल सकीं।


ब्रिटेन में 18वीं सदी तक शहरों के मध्यवर्ग के लोग सामंती सीमाओं से पूरी तरह मुक्त हो चुके थे। वे सारी दुनिया में अपने उत्पादों के बढ़ते बाजारों की पूर्ति हेतु उत्पादन से मुनाफा कमाने के लिए उसमें पूंजी लगा सकते थे। अब सामंती अर्थव्यवस्था पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में तब्दील हो रही थी। 


उस समय के महान तकनीकी आविष्कारों ने परिवर्तनों को प्रोत्साहन दिया। इस प्रकार 18वीं सदी के मध्य तक वस्तुओं के उत्पादन में धीरे-धीरे होने वाले परिवर्तनों ने एक तीव्र परिवर्तन को जन्म दिया। 16वीं और 17वीं सदी के दौरान प्रयोगात्मक विज्ञान के नए तरीकों का आम जीवन में प्रसार शुरू हो चुका था। उनके उपयोग ने नई तकनीक विकसित कर उत्पादन के साधनों में काफी परिवर्तन कर दिया, जिसे हम औद्योगिक कहते हैं।


विज्ञान ने औद्योगिक क्रांति के लिए कोई सीधी भूमिका नहीं निभाई, पर प्रौद्योगिकी ने यह भूमिका अवश्य अदा की। साथ ही प्रौद्योगिकी संबंधी समझ और डिजाइन, विज्ञान पर निर्भर थी। उदाहरण के तौर पर प्रौद्योगिकी विकास में न्यूटन की गति, बल, शक्ति और ऊर्जा आदि के सिद्धांतों ने अत्यधिक योगदान दिया। इस समझ के बिना भाप इंजन का आविष्कार न हुआ होता जो पूरी औद्योगिक क्रांति का केंद्र था।



औद्योगिक क्रांति से होने वाले परिवर्तन 

कृषि क्षेत्र 

कृषि क्रांति के बिना औद्योगिक क्रांति संभव नहीं थी। 17वीं शताब्दी तक कृषि क्षेत्र में सामान्यतः वहीं विधियां और उपकरण प्रयोग में लाये जाते थे, जो कई शताब्दियों से प्रयोग में लाये जाते रहे थे। कृषि तकनीकी में परिवर्तन नहीं होने का कारण यह था कि कृषि-जन्य वस्तुओं की मांग राज्य की खपत से अधिक नहीं थी। किंतु ज्यों-ज्यों कारखाना प्रणाली का विस्तार हुआ, शहरों की आबादी बढ़ी और अधिकाधिक लोग कम आत्मनिर्भर रहने लगे, त्यों-त्यों गांव के किसानों को शहर में रहने वालों के लिए अधिक अन्न और कारखानों के लिए अधिक कपास का उत्पादन करना पड़ा।  


कृषि-जन्य वस्तुओं की मांग बढ़ने से कृषि के क्षेत्र में वैज्ञानिक तरीकों से काम करने और कृषि उपयोगी मशीनों को बनाने की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। अब उर्वरकों का प्रयोग किया जाने लगा जिससे उपज में काफी वृद्धि हुई। जनसंख्या में वृद्धि, औद्योगिक मशीनों के लिए अधिक कृषि उत्पादन की आवश्यकता, श्रम बचाने की अवधारणा आदि कारणों ने कृषि में मशीनरी का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। कृषि उत्पादन में हुई इस वृद्धि का औद्योगिक विकास से गहरा संबंध है। 


वस्त्र उद्योग

औद्योगिक क्रांति की शुरुआत मुख्यतः वस्त्र उद्योग से हुई। 18वीं शताब्दी के मध्य तक यूरोप में सूत कातने के दो ही साधन थे तकली और चरखा। पुराने उद्योग वस्त्रों की बढ़ती मांग की पूर्ति कर पाने में समर्थ नहीं थे। 


1750 ई. तक उद्योग एक नये रेशे-'कपास' का इस्तेमाल करने लगे। इससे पहले सूती कपड़े इंग्लैंड में भारत से ही आयात किये जाते थे। इंग्लैंड ने भारत के वस्त्र उद्योग को हतोत्साहित करने के लिए अपने देश के उद्योगों को बढ़ावा दिया और भारतीय आयात पर कई तरह के प्रतिबंध थोप दिए


नई प्रकार की शक्ति: वाष्प इंजन

जैसे-जैसे नए-नए यंत्रों का आविष्कार होता जा रहा था उनको चलाने के लिए शक्ति के नए स्रोतों की आवश्यकता बढती जा रही थी। अभी तक जल शक्ति एवं पवन शक्ति का प्रयोग किया जाता था परंतु इनकी सीमाएं थीं। जल शक्ति का उपयोग करने के लिए कारखानों का निर्माण तेज बहने वाली पानी की धारा के समीप करना पड़ता था और ऐसी जलधाराएं पर्याप्त न थी तथा वे प्राय: उन स्थानों से बहुत दूर थी, जहां मजदूर मिल सकते थे, कच्चा माल सुलभ था और बाजार थे। इसलिए अनेक लोगों ने वाष्प शक्ति का‌ उपयोग करने के उपाय खोज निकाले।


सर्वप्रथम सन 1712 ई. में थॉमस न्यूकोमेन नामक एक अंग्रेज ने खानों से पानी बाहर निकालने के लिए वाष्प इंजन का आविष्कार किया परंतु इस इंजन में ईंधन का खर्चा अधिक था तथा यह इतना भारी था कि सभी स्थानों पर इसका प्रयोग संभव न था। 


1769 ई. मे जेम्स वाट ने न्यूकोमेन के द्वारा बनाये गये इंजन के दोषों को दूर करके एक नया वाष्प इंजन बनाया, जो कम खर्चीला और अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ। 


लौह उधोग में नई तकनीक का प्रयोग

नई-नई मशीनें बनाने के लिए और अधिक लोहे की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी लेकिन कच्चे लोहे को पिघलाकर उसकी अशुद्धियों को साफ करने का ढंग पुराना, श्रमसाध्य एवं महंगा था। लोहे को पिघलाने के लिए इंग्लैंड में लकड़ी का कोयला काम में लिया जाता था। किंतु कुछ वर्षों बाद लकड़ी के कोयले में तेजी से कमी आने लगी। अतः ईंधन के अन्य साधनों की खोज की जाने लगी। 


1750 ई. के आसपास यह पता लगा कि पत्थर के कोयले से बना कोक प्रयुक्त किया जा‌ सकता है। कोक की तेज उष्मा से लोहा अयस्क को पिघलाने एवं साफ करने का काम सुगम हो गया। अब कोक की मांग भी बढ़ने लगी।जिससे पत्थर के कोयले के खनन में प्रगति हुई। धीरे-धीरे नई किस्म की भट्टियां तैयार होने लगी और साफ व मजबूत लोहा भारी मात्रा में बनने लगा।


1784 ई. में हेनरी कोर्ट ने एक ऐसी विधि का आविष्कार किया, जिसके द्वारा अधिक शुद्ध और अच्छा लोहा बनाना संभव हो गया। इससे लोहा उत्पादन के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ और उत्तम किस्म के लोहे से कई प्रकार की नवीन मशीनें बनाने में आसानी हो गयी। 


अब धीरे-धीरे लोहे का स्थान इस्पात ने ले लिया क्योंकि लोहे से बनी मशीनें काफी वजनदार होती थी और उनमें जंग भी लग जाता था। इस्पात अपेक्षाकृत हल्का, मजबूत, जंगरोधी और लचकदार होता है। लोहे को शुद्ध करके उसमें कुछ मात्रा में कार्बन, मैग्नीज तथा अन्य पदार्थों को मिलाकर इस्पात तैयार किया जाता है। 1856 ई. से पूर्व इस्पात बनाने की विधि काफी महंगी थी। 


हेनरी बेसेमर ने सस्ता एवं जल्दी इस्पात बनाने की विधि खोज निकाली, जो 'बेसेमर प्रक्रिया' के नाम से विख्यात हुई। इस प्रक्रिया में ढलवां लोहे से सीधे इस्पात तैयार किया जाता था। इससे पिघली हुई लौह धातु से इस्पात का उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा, जिससे आने वाले युग को 'इस्पात युग' भी कहा गया।


सड़कों एवं नहरों का निर्माण

वस्त्र उद्योग एवं लौह उद्योग में जो क्रांतिकारी परिवर्तन हुए, उनका प्रभाव परिवहन के क्षेत्र में परिलक्षित होने लगा। बढ़ते हुए व्यापार एवं उद्योग के कारण परिवहन के साधनों में भी आवश्यक सुधार होने लगे। 1756 -1836 ई. में सड़क निर्माण का नया तरीका खोज निकाला। 


भारी सामान की परिवहन में बहुत खर्च पड़ने के कारण ब्रिटिश सरकार ने नहरें बनवाना शुरू किया। कुछ समय बाद इंग्लैंड के कई प्रमुख शहर बड़ी-बड़ी नहरों से जोड़ दिए गए। इससे भारी वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में काफी सुविधा हो गई। 


1869 ई. में फ्रांसीसी इंजीनियर 'फर्दीनांद द लैस्सैप' ने स्वेज नहर, जो भूमध्य सागर एवं लाल सागर को मिलाती है, का निर्माण पूरा कराया इस नहर के बन जाने से यूरोप और भारत के बीच की दूरी एक तिहाई कम हो गयी


परिवहन के क्षेत्र में नवीन आविष्कार

1807 ईस्वी में प्रथम वाष्प-चालित नौका का आविष्कार किया। इसके बाद ही वाष्प शक्ति से चलने वाले जहाज विकसित हुए। प्रथम समुद्र पार जाने वाली स्टीम बोट 'सिरिअस' ने 1838 ई. में अटलांटिक महासागर को 18 दिन में पार किया। 1850 ई. के प्रारंभिक दशक में नौकाओं में पैडल व्हील के स्थान पर स्क्रू प्रोपेलर का प्रयोग किया जाने लगा, जिससे उनकी गति काफी तेज हो गयी।


लोहे की पटरियों पर चलने वाले रेल इंजन के आविष्कार ने स्थल यातायात के क्षेत्रों में क्रांति ला दी। 1814 ई. में भाप इंजन 'राकेट' का आविष्कार किया। यह भाप की शक्ति से लोहे की पटरियों पर स्वयं चल सकता था साथ ही लदी हुई गाड़ियों को खींच सकता था।


इस आविष्कार के कारण मैनचेस्टर और लिवरपूल के बीच 1830 ईसवी में प्रथम रेलगाड़ी चली। इस रेलगाड़ी ने माल से भरे डिब्बों को 1 घंटे में 29 मील की चाल से खींचकर संसार को चकित कर दिया। रेलों द्वारा कोयला, लोहा एवं अन्य औद्योगिक उत्पादनों को कम समय में और कम खर्च पर लाना ले जाना संभव हुआ।


लगभग 1880 ईसवी में गैसोलीन अर्थात पेट्रोल इंजन के आविष्कार ने परिवहन के क्षेत्र में पुनः क्रांति पैदा कर दी। प्रारंभ में चालक शक्ति के रूप में इसका उपयोग मोटर लॉन्च, मोटर बग्घी, और बाइसिकल में किया गया। अमेरिका के हेनरी फोर्ड ने मोटरों को सस्ते दामों में बनाकर उनको लोकप्रिय बनाया। फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैंड में भी मोटर निर्माण के कारखाने स्थापित हुए। 


1839 ईस्वी में चार्ल्स गुडइयर ने यह खोज निकाला कि रबर का किस तरह विलीनीकरण किया जाए कि वह सख्त हो जाए। इस खोज ने मोटर उद्योग की सफलता में उल्लेखनीय सहायता पहुँचायी। रबर के टायरों से यात्रा आरामदेह हो गई।


संचार के क्षेत्र में नवीन प्रयोग एवं सुधार

संचार व्यवस्था के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण सुधार किये गये। 1840 ईसवी में एक व्यवस्था स्थापित की, जिसके द्वारा एक पेंस के टिकट से कोई भी पत्र ग्रेट ब्रिटेन में किसी भी जगह भेजा जा सकता था।


1844 ईसवी में सैम्युअल मोर्स ने एक व्यावहारिक तार-यंत्र का आविष्कार किया। तार-यंत्र के सिद्धांत का उपयोग शीघ्र ही विश्व के महाद्वीपों को परस्पर संबंधित करने के लिए किया गया। दो महाद्वीपों को जोड़ने के लिए सर्वप्रथम अंतरजलीय तार-यंत्र उत्तरी अमेरिका और यूरोप के मध्य लगाया गया, 'अटलांटिक केबल' था।  इसे एक अमेरिकी साइरस फील्ड ने 1866 ईं.मे तैयार किया था।


1876 ई. में ग्राहम बैल ने टेलीफोन का आविष्कार करके संचार व्यवस्था को ही बदल दिया। 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में विज्ञान और औद्योगिक प्रगति के बीच निकट का संबंध स्थापित हो गया। पिछले वर्षों में विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में जो अन्वेषण हुए थे, उनका प्रयोग करके औद्योगिक क्षेत्र में नए-नए प्रयोग किये जाने लगे।


कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिकों,‌ जैसे- फैराडे, बुन्सेन, सिमन्स, एम्पियर, जेम्स यंग आदि जिनके आविष्कार औद्योगिक विकास के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध हुए। वैज्ञानिक आविष्कारों एवं तकनीकी परिवर्तनों ने औद्योगिक क्रांति को संभव बना दिया।



औद्योगिक क्रांति के परिणाम - Audyogik Kranti Ke Parinam

आर्थिक परिणाम

  • उत्पादन एवं वाणिज्य में असाधारण वृद्धि 
  • आर्थिक संतुलन 
  • नगरों का विकास 
  • बैंक एवं मुद्रा का विकास 
  • कुटीर उद्योगों का विनाश 
  • राष्ट्रीय बाजारों को सरंक्षण 
  • औद्योगिक पूंजीवाद का विकास


सामाजिक परिणाम

  • जनसंख्या में वृद्धि 
  • नये सामाजिक वर्गों का उदय 
  • श्रमिकों की दयनीय स्थिति एवं अस्वस्थ परिवेश 
  • संयुक्त परिवार प्रथा में बिखराव 
  • नये औद्योगिक बुर्जुआ वर्ग का वर्चस्व 
  • मानवीय संबंधों में गिरावट 
  • नैतिक मूल्यों में गिरावट 
  • गंदी बस्तियों की समस्याएं 
  • नई संस्कृति का जन्म 


राजनीतिक परिणाम 

  • राजनीतिक लोकतंत्र की मांग 
  • औपनिवेशिक प्रतिस्पर्धा की शुरुआत 
  • मध्यम वर्ग की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का उदय 
  • श्रमिक आंदोलन का उदय 


वैचारिक परिणाम 

  • आर्थिक उदारवाद की शुरुआत  
  • समाजवाद का उदय


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